Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 294
________________ १४ ३३७. निजपुर आज मची होरी (बुध०) ५०८ १८८ ३३८. निजरूप को विचार निजानन्द स्वाद लो (सुख०) १५५ ३३९. निजरूप सजो भव कूप तजो (कुञ्जी०) ४२२ १५१ ३४०. निजहित कारज करना भाई (दौल०) ___३२९ ११६ ३४१. नित पज्यिो धी-धारी जिनवाणी (दौल०) १८२ ३४२. निरखत जिन चन्द्रवदन स्वपर सुरुचि आई (दौल०) १३१ ३४३. निरखत सुख पायो जिनमुखचन्द (दौल०) १३७ ३४४. निरखे नाभिकुमार जी मेरे नैन सफल भए (बुध०) ३४५. नेमि नवल देखें चल रही (द्या०) ३४६. नेमि प्रभु की श्याम वरन छवि (दौल०) ३४७. नेमि बिना न रहे मेरा जियरा (भूध०) ३४८. नेमि रमते बाल ब्रह्मचारी (महा०) ९९ ३३ ३४९. नैननि बान परी दरसन की (भूध०) ११८ ३५०. नैन शान्त छवि देखि के दोऊ (बुध०) ३४५ ३५१. पद्म सद्म पद्मा मुक्ति परम दरसावन है (दौल०) १०५ ३५२. परदा पड़ा है मोह का आता नजर नहीं (न्या०) ४७५ १७५ ३५३. परनति सब जीवनि की तीन भाँति बरनी (भाग०) ५९९ ३५४. परनारी से दूर रहो परनारी नागन कारी है (जिने०) ५७२ २१४ ३५५. परम कल्याण भाजन में अमृत (सुख०) ३५६. परम गुरु बरसत ज्ञान झसे (द्यान०) ३५७. परम रस है मेरे घर में (सुख०) ४३६ १५७ ३५८. पूजा रचाउँ जो पूजन फल पाऊँ (महा०) १४१ ४८ ३५९. प्रथम पाण्डवा भूप खेलि जुआ सब खोयौ (भूध०) ५७१ ३६०. प्रभु अब हमको होहु सहाय (द्यान०) ३६९ __ १३० ३६१. प्रभु गुन गाये रे यह औसर (भूध०) २९७ १०५ ३६२. प्रभु जी अरज हमारी उर धारी (बुध०) .. ४२९ __ १५४ १९४ ४८ २१४ ३५१ १२४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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