Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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१५ ३६३. प्रभु तुम आतम ध्येय करो (चम्पा०) ३६४. प्रभु तुम मूरत दृग सों निरखें (भाग०) ३६५. प्रभु तुम सुमरन ही में तारे (द्यान०) ३६६. प्रभु तेरी महिमा कहिय न जाय (द्यान०) ३६७. प्रभु तेरी महिमा किहि मुख गावैं (द्यान०) ३६८. प्रभु थांको लखि मम चित हरसायो (भाग०) ३६९. प्रभु थांसू अरज हमारी हो (बुध०) ३७०. प्रभु मोरी ऐसी बुधि कीजिए (दौल०) ३७१. प्रभु मैं किहि विधि थुति करौ तेरी (द्यान०) ३७२. प्रभु म्हांकी सुधि करुना करी लीजे (भाग०) ३७३. प्रानी समकित हो शिवपंथा (भाग०) ३७४. प्रेम अब त्यागहु पुद्गल का (भाग०) ३७५. प्यारी लगै म्हाने जिन छवि थारी (दौल०) ३७६. प्यारी लगै म्हाने जिन छवि थारी (दौल०) ३७७. फूली बसन्त जहँ आदीसुर शिवपुर गए (द्यान०) ३७८. बधाई आली नाभिराय घर (म०च०) ३७९. बधाई चन्द्रपुरी में आज (बुध०) ३८०. बधाई भई हो तुम निरखत (बुध०) ३८१. बधाई राजै हो आज बधाई राजै (बुध०) ३८२. बन्दौं अद्भुत चन्द्र वीर (दौल०) ३८३. बन्दौं जगतपति नामी (जिने०) ३८४. बन्दौं नेमि उदासी मद मारिने को (द्यान०) ३८५. बरसत ज्ञान सुनीर हो (भाग०) ३८६. बसि संसार में पायो दुःख (द्यान०) ३८७. बाबा! मैं न काहू का (बुध०) ३८८. वामा घर बजत बधाई (दौल०)
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MONG .
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