Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 298
________________ १८ ५८९ २२३ १५७ ५३ १३९ ३९२ ३५७ ३७४ १२६ ३८ १३ ३६८ १३० ६०२ २२८ १०४ २९६ ५८० ०. orm ११० ५१५ ३७६ ४४१. मूढ़ मन मानत क्यों नहिं रे (नैन०) ४४२. मेघ घटासम श्री जिनवानी (भाग०) ४४३. मेरा सांई तो मोमैं (बुध०) ४४४. मेरी अरज कहानी (बुध०) ४४५. मेरी जिनवर सुनो पुकार (जिने०) ४४६. मेरी जीभ आठों जाम (भूध०) ४४७. मेरी बेर कहा ढील करी जी (द्यान०) ४४८. मेरे कब है वा दिन की सुधरी (दौल०) ४४९. मेरे चारों शरन सहाई (भूध०) ४५०. मेरे मन सूवा जिनपद पीजरे बसि (भूध०) ४५१. मेरो मनवा अति हरषाय (बुध०) ४५२. मेरो मन ऐसी खेलत होरी (दौल०) ४५३. मैं आयो जिन शरन तिहारी (दौल०) ४५४. मैं कैसे रूप निहारूँ हाँ (कुञ्जी०) ४५५. मैं कैसे शिव जाऊँ रे डगर भुलावनी (महा०) । ४५६. मैं तुम शरन लियो तुम सांचे (भाग०) ४५७. मैं तेरा चेरा प्रभु मेरा (बुध०) ४५८. मैं देखा अनोखा ज्ञानी वै (बुध०) ४५९. मैं देखा आतम रामा (बुध०) ४६०. मैं निज आतम कब ध्याऊँगा (द्यान०) ४६१. मैं नेमिजी का बन्दा (द्यान०) ४६२. मैं हरख्यो निरख्यो मुख तेरो (दौल०) ४६३. मो सम कौन कुटिल खल कामी (भाग०) ४६४. मौंकों तारो जी किरपा करि के (बुध०) ४६५. मौगांरा लोभीड़ा नरभव खोयो रे अजान (बुध०) । ४६६. मोहि आपनाकर जान ऋषभ जिन (बुध०) १४६ ४९ مر 9 १७५ ३६५ ३६५ ___ ५९ १२८ १२५ ९३ سه ३५३ २६६ ur سه ३८९ १३८ ४०९ ४०२ १४५ 9 م ३८२ १३३ ३८२ ३५५ ५२० ४५ १३४ १२५ سه Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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