Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 281
________________ ४६४ २९४ १०३ ४१५ १४८ २४० ८४ ४१७ १४८ 0 पदानुक्रमणिका क्रम सं० पदानुमक्रमणिका पद सं० पृ०सं० १. अघ अंधेरे आदित्य नित्य (भूध०) १०६ २. अज्ञानी पाप धतूरा न बोय (भूध०) ३. अजित बिन बिनती हमारी (भूध०) ४. अजितनाथ सों मन लागो रे (धान) ५. अजी हो जीवा जी थाने श्री गुरु (बुध) ६. अन्त कसौं छुटै निहचे पर मूरख (भूध०) ७. अन्तर उज्जवल करना रे भाई (भूध०) ८. अपना भव उर धरना (जिने०) ९. अपनी सुधि पाये आप (अज्ञात) १०. अपनी सुधि भूलि आप दुख पायो (दौल०) ११. अब अघ करत लजाये रे भाई! (बुध०) १२. अब घर आये चेतनराय (बुध०) १३. अब तू जान रे चेतन जान (बुध०) १४. अब थे क्यों दुख पावो रे (बुध०) १५. अब नित नेम भजो (भूध०) १६. अब मेरे समकित सावन आयो (भूध०). १७. अब मोहि जान परि भवोदधि (दौल०) १८. अम मोहि तारि लेहु महावीर (द्यान०) १९. अब हम अमर भए न मरेंगे (द्यान०) २०. अब हम अमर भए न मरेंगे (ज्योति) २१. अब हम आतम को पहिचान्चान्यों (धान) २२. अब हम आतम को पहिचाना (द्यान०) २३. अब हम नेमिजी की शरण (द्यान०) ___ ५५ २४. अमूल्य तत्त्व विचार (श्रीमद्) ५०३ १८५ २५. अमृत झर झुरि-झुरि आये (महा०) १७९ ६१ ० 3 ५३० - १६८ ४४० ४०२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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