Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 284
________________ २१२ १०२ __ ७० ० स ० ० स ० ० २६५ ८ ४९१ १८१ ३११ ३८० १३३ ३८७ १२८ १४२ ४८ २९५ १०४ १७० ५७ ७८. ए विधि भूल तुम” (भूध०) ५६५ ७९. ऐसी समझ के सिर धूल (भूध०) ८०. ऐसे मुनिवर देखे वन में (बना०) ८१. ऐसे विमल भाव जग पावै (भाग०) ८२. ऐसे साधु सुगुरु कब मिलि है (भाग०) ८३. ऐसो ध्यान लगावो भव्य जासों (बुध०) ८४. ऐसो श्रावक कुल तुम पाय (भूध०) ८५. ऐसो सुमरन कर मोरे भाई (द्यान०) ८६. ओर निहारो मोर दीनदयाल (महा०) ८७. और ठौर क्यों हेरत प्यारा तेरे ही (बुध०) ८८. और निहारो जी श्री जिनवर स्वामी (महा०) ८९. और सब थोथी बातें (भूध०) और सबै जग द्वन्द्व मिटायो (दौल०) और सबै मिलि होरी रचा (बुध०) ९२. कंचन कुंभन की उपमा (भूध०) ९३. कंचन दुवि व्यञ्जन लच्छन जुत (बुध०) ९४. कञ्चन भण्डार भरे मोतिन के पुञ्ज परे (भूध०) ५९३ ९५. कब मैं साधु स्वभाव धरूँगा (भाग०) ९६. कर-कर जिनगुण पाठ जात अकारथ रे जिया(अज्ञात) ५५४ ९७. करनौं कहु न करनतें (भूध०) ९८. कर पद दिढ़ हे तेरे पूजा तीरथ सारो (द्या०) ९९. करम जड़ है न इनसे डर (सुख०) १००. करम देत दुख जोर हो (बुध०) १०१. करम वश चारों गति जावे (जिने०) ४६९ १०२. कर रे! कर रे! कर रे! तू आतम हित कर रे (द्यान०)४११ १०३. कर लै हो सुकृत का सौदा (बुध०) ५०८ १८८ २१३ ४ २२४ २११ २०६ ४८ १०९ १७४ ४७४ ३४३ १२२ १७२ १४६ २७१ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306