Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 288
________________ १११ ५९५ ५६२ ३१३ २११ ११० . 7°) ५४९ २०४ १९८ १८७ २०४ ५३२ ५०५ ५४८ २४७ ५४९ १७९ / २१८ २३७ ८२ १८२. छिन न विसारां चित सौं (बुध०) १८३. छेम निवास छिमा धुवनी बिन (भूध०) १८४. जंगम जिय को नास होय (भूध०) १८५. जगउ की झूठी सब माया (जिने०) १८६. जगत जंजाल से हटना (सुख०) १८७. जगत जन जूवा हारि चले (भूध०) १८८. जगत में आयो न आयो (अज्ञात) १८९. जगत में कोई नहीं मेरा (सुख०) १९०. जगत में सम्यक उत्तम भाई (द्यान०) १९१. जगत में होनहार सो होवे (बुध०) १९२. जग में जगती जिनवाणी (महा०) १९३. जग में श्रद्धानी जीव (भूध०) १९४. जड़ता बिन आप लखें (नयना०) १९५. जनम जलधि जलजान जान (भूध०) १९६. जब हंस तेरे तन का कहीं (न्यामत०) १९७. जम आन अचानक दावेगा (दौल०) १९८. जय जय जग भरम तिमिर हरन (दौल०) १९९. जय जय नेमिनाथ परमेश्वर (द्यान०) २००. जय जिन वासुपूज्य (दौल०) २०१. जय शिवकामिनी कंतवीर (दौल०) २०२. जय श्री ऋषभ जिनेन्द्रा (दौल०) २०३. जय श्री वीर जिनेन्द्र चन्द्र (दौल०) २०४. जयवंतो जिनविंब जगत मैं (जिने०) २०५. जयौ नाभि भूपाल बाल (भूध०) २०६. जब लैं आनन्द जननि दृष्टि परी भाई (दौल०) । २०७. जाउँ कहाँ तज शरण तिहारे (दौल०) ५३ ४५३ م G که ८१ १०८ १०४ १०३ १२६ ४९ १७४ ३७५ १३२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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