Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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१५६. चन्दाप्रभु देव देख्या दुख भाग्यौ (बुध०) १५७. चन्द्रानन जिन चन्द्रनाथ (दौल०)
१०७ १५८. चल देखे प्यारी नेमि नवल (द्यान०)
५९ १५९. चलि सखि देखन नाभिराय घर नाचत हरि (दौल०) ४८४ १६०. चाहत है धन होय किसी विध (भूध०)
५४० १६१. चिन्ता तजै न चोर रहत चौकायत (भूध०) १६२. चित! चेतन की यह विरियां रे (भूध०) १६३. चितवन वदन अमल चन्द्रोपम (भूध०) १६४. चित्त-चित्त कै विदेश कब अशेष पर (दौल०) १६५. चिदानन्द भूलि रह्यो सुधिसारी (महा०) २२९ १६६. चिन्मूरति दिग्धारी की मोहि रीति (दौल०) २०१ १६७. चुप रे मूढ़ अजान (बुध०) १६८. चेतन अखियाँ खोलो ना (ज्योति०) १६९. चेतन कौन अनीति गही री (दौल०) ३२५ १७०. चेतन खेल सुमति संग होरी (बुध०) १७१. चेतन खेले होरी (द्यान०)
५१३ १७२. चेतन तैं याही भ्रम ठान्यो (दौल०) ३२७ १७३. चेतन तेहि न नेक संभार (बना०) १७४. चेतन निज भ्रमतें भ्रमत रहै (भाग०) १७५. चेतन भ्रमत अधीर हो (कुञ्जी०) १७६. चेतन यह बुधि कौन सयानी (दौल०) १७७. चेतन राग किसोरी (कुञ्जी०)
५१९ १७८. छवि जिनराई राजै छै (बुध०) १७९. छांड़त क्यों नहि रे नर (दौल०)
३३६ १८०. छोड़ि दे अभिमान जियरे (भैया भग०) १८१. छोड़ि दे या बुधि भोरी (दौल०)
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