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१०४. करो कल्याण आतम का भरोसा है न (चुत्री०) ५५३ १०५. करो मन आतम वन में केल (सुख) १०६. करौ रे भाई तत्त्वारथ सरधान (भाग०)
२८१ १०७. कर्मनि की गति न्यारी (मक्खन०) १०८. कर्म बड़ा देखो भाई! जाकी चंचलताई (जिने०) १०९. कहत सुगुरु करि सुहित भविक जन (द्यान०) ३०७ ११०. कहा परदेशी को पतियारो (भैया भग०) ४५९ १११. काहे को सोचत अति भारी रे (द्यान०) ११२. कहिवे को मन सूरमा (द्यान०)
५८४ ११३. काउसग्गमुद्रा धरि वन में (भूध०) ११४. कानन वसै ऐसो आन न गरीब जीव (भू०ध०) । ५६६ ११५. कानी कौड़ी विषय सुख (भूध०) ११६. कारज एक ब्रह्म ही सेती (द्यान०) ११७. काल अचानक ही ले जायगा (बुध०) ११८. काहू घर पुत्र जायो (भूध०) ११९. काहे को बोलतो बोल बुरे नर (भूध०) १२०. की पर कराँ जी गुमान थे (बुध०) १२१. कीजिए कृपा मोहि दीजिए स्वपद (भाग०) ३६६ १२२. कुगति बहन गुन गहन दहन दावानल सी (भूध०) ५६८ १२३. कुन्थन के प्रतिपाल कुंथु जग तार (दौल०) १२४. कुमति को कारज कूडाँ हो जी (बुध०) २४५ १२५. कुमति को छाड़ो भाई हो (महा०)
२३३ १२६. कृमिरास कुवास सराप दहैं शुचिता सब (भूध०) १२७. केवल ज्योति सुजागी जी (भाग०)
१५८ १२८. कैसी छवि सोहे मानो सांचे में ढारी (जिने०) १२८ १२९. कैसे करि केतकी कनेर एक कही जाय (भाग०) १६३
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