________________
४९७
१५९ २३४
२३४
८१
४३४
१५६
५
..
१३९
४७
१३८
४७
० ०
१८४
३ w
२०३
० v
२०८. जाकौ इन्द्र चाहे अहमिन्द्र चाहें (भूध०) २०९. जानके सुज्ञानी, जैनवानी (भाग०) २१०. जान-जान अब रे हे नर आतम ज्ञानी (नन्द०) २११. जानत क्यों नहिं रे (दौल०) २१२. जान लियो मैं जान लियो (बुध०) २१३. जाना नहीं निज आतमा ज्ञानी हुए तो (शिव०) २१४. जिनके हिरदै प्रभु नाम नहीं (द्यान०) २१५. जिन छवि तेरी यह धन जग तारन (दौल०) २१६. जिन छवि लखत यह बुधि भयी (दौल०) २१७. जिनधर्म रतन पाय कै (जिने०) २१८. जिननाम सुमर मन! बावरे (द्यान०) २१९. जिन राग द्वेष त्यागा वह सतगुरु (दौल०) २२०. जिनराज चरन मन मति विसारै (भूध०) २२१. जिनराज न विसारो मति (भूध०) २२२. जिनराज शरण में तेरी सुन पुकार (भूरा०) २२३. जिनवर आनन भान निहारत (दौल०) २२४. जिनवाणी के सुन से मिथ्यात मिटे (बुध०) २२५. जिनवाणी गंगा जन्म मरण हरणी (महा०) २२६. जिनवाणी सदा सुखदानी (महा०) २२७. जिनवानी जान सुजान रे (दौल०) २२८. जिन वैन सुनत मोरी भूल भगी (दौल०) २२९. जिन स्वपर हिताहित चीना (भाग०) २३०. जिय को लोभ महासुखदाई (द्यान०) २३१. जिया ऐसा दिन कब आय है (नन्द०) २३२. जिया का मोह महा दुख दाई (भैया० भग०) २३३. जिया तुम चालो अपने देश (दौल०)
०
१००
३४
४४
० m
१५३
५२
9 ur
१७७ १७२ १७१
५८
५
॥
१४०
m
२२६
५९७ ६०४
२२९
४७२
१७३
४१६
१४८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org