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(२११)
बालों ने वरन फेरा, रोग ने शरीर घेरा, पुत्र हू न आवै । नेरा' औरों की क्या कहानी ॥ आया रे बुढापा. ॥ ३ ॥ 'भूधर' समझ अब स्वहित करैगो कब, यह गति है है जब । तब पछितैहै प्रानी ॥ आया रे बुढापा. ॥ ४ ॥
१७.सप्त व्यसन कवि बुधजन (५६१)
छप्पय
सकल'-पापसंकेत, आपदाहेत कुलच्छन कलहखेत, दारिद्र देत, दीखत निज अच्छन ॥ गुन समेत जस सेत', केत रवि रोकत जैसें । आगुन' -निकर-निकेत, लेत लखि बुधजन ऐसे ॥ जुआ समान इह लोक मैं, आन अनीतिन पेखिये। उस विसनराय के खेलको, कौतकहू नहिं देखिये ॥
कवि भूधरदास
(५६२)
छप्पय जंगम२ जियको नास, होय तब मांस कहावै । सपरस आकृति नाम, गन्ध उर घिन उपजावै ॥ नरक जोग निरदई, खहि५ नर नीच अधरमी । नाम लेत तज देत, असन'६ उत्तम कुल करमी ॥ यह निपट निंद्य अपवित्र अति कृमिकुल रास निवास नित । आमिष अभच्छ'" याको सदा, सरजौ८ दोष दयालचित्त ।।
(५६३)
सवैया कृमिरास९ कुवास° सराप२१ दहैं शुचिता सब छीनत जात सही ।
१. रंग २. नजदीक ३. होगी ४. पछतायगा ५.समस्त ६.आपत्ति का कारण ७.कलह (लड़ाई) का क्षेत्र ८.पवित्र ९.सफेद १०.अवगुणों का समूह ११.देखिये १२.चलने फिरने वाले जीव १३.स्पर्श १४. अवगुणों का समूह १५.खाते हैं १६.भोजन १७.अभक्ष्य १८.बनाया १९.कीड़ों की राशि २०.बुरी गंध २१.शराब ।
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