Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 274
________________ (२२४) (५९१) छप्पय मनरूप हाथी ज्ञान महावत डारि, सुमति' संकल' गहि खंडै । गुरु अंकुश नहिं गिनै, ब्रह्मव्रत-विरख विहडै ॥ करि सिधंत सर न्हौन,' कलि अघ रज सौं ठाने । करन चपलता धरै, कुमति करनी रति मानै ॥ डोलत सुछंद मदमत्त अति गुन पथिक न आवत उरै । वैराग्य खंभतै बांध 'नन्द' मन मतंग विचरत बुरै ॥ १९. कषाय राग- मल्हार कवि भागचन्द (५९२) मान न कीजिए हो परवीन ॥ टेक॥ जाय पलाय. चंचला१ कमला २ तिष्ठै१३ दो दिन तीन ॥ धन जोवन छनभंगुर सबही, होत सुछिन५-छिन छीन'६॥ मान. ॥ १॥ भरत नरेन्द्र खंड पटनायक, तेहु भये मद हीन । तेरी बात कहा है भाई, तू तो सहज हि दीन ॥ मान. ॥ २ ॥ 'भागचन्द' मार्दव रससागर माहिं होहु रसलीन । तातें जगत जाल में फिर कहुं जनम न होय नवीन ॥ मान. ॥ ३ ॥ कवि भूधरदास (५९३) कवित्त कंचन भंडार भरे मोतिन८ के पुंज९ परे घने लोग द्वार घरे मारग निहारते । जानि२१ चढ़ि डोलत झीने सुर बोलत हैं, काहु की हू२२ और नेक नीके न२३ चितारते । १. सुबुद्धि २. सांकल ३. तोड़ता है ४. विखंडित ५. स्नान ६. पाप रूपी धूल से ७. पास में ८. खंभा से ९.प्रवीण १०.भागकर ११.चंचल १२.लक्ष्मी १३.टहलती है १४.क्षण भंगुर १५.क्षण-क्षण में १६.क्षीण १७.मार्दव धर्म १८.मोतियों के १९.टेक २०.मार्ग २१.सवारी पर २२.किसी की भी २३.अच्छी तरह नहीं देखते। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306