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(२२८)
रामचन्द्र अरु सीता राणी जाय बसे दंडक वन में ॥१॥ द्वाराक्षेपण' ताहूं कीनूं मुनिवर एक मिले क्षण में ॥ २ ॥ मास एक उपवासी मुनि लखि हरणे दोउ मन बच तन में ॥ ३ ॥ दोष रहित मुनिदान निरखके पक्षी जटायु अनुमोदन में ॥४॥ 'बुध महाचन्द्र' कहा हूँ जावो धरमी के धरम सदा मन में ॥ ५ ॥
कवि दौलतराम
(६०२)
मेरे कब है वा दिन की सुधरी ॥ मेरे. ॥ टेक ॥ तन बिन वसन असन विन वन में, निवसो नासा दृष्टि धारी ॥ मेरे. ॥ १ ॥ पुण्य पाप पर सौं° कब विरचो, परचों२ निजनिधि चिर३ विसरी । तज उपाधि सजि सहज समाधि सहों घाम हिम मेघ झरी ॥ मेरे. ॥ २ ॥ कब घिर जोग धरों ऐसो मोहि, उपल'५ जान मृग खाज६ हरी । ध्यान कमान तान अनुभव शर छेदौं किहि दिन मोह" अरी ॥ मेरे. ॥ ३ ॥ कब तन९ कंचन२° एक गनो१ अरु, मनि जड़ितालय शैल दरी२२ । 'दौलत' सत गुरू वचन सैव जो पुरवो आशा यही हमारी ।मेरे. ॥ ४ ॥
(६०३) चित चित्त कैं विदेश कब अशेष पर वमू२३ दुखदा अपार विधि दुचारकी चमू दमू ॥ चित. ॥ टेक॥ तजि पुण्य पाप थाप आप आप में रमू८ कब राग९ आग शय-वाग दागिनी शमू ॥ चित. ॥ १ ॥ दृग ज्ञान मानतै° मिथ्या, अज्ञान तम दमू१, कब सर्वजीव प्राणी भूत सत्व को छमू२ ॥ चित. ॥ २ ॥ जल मल्ल लिप्त कल सुकल सुबल परिनमू दलके२३ त्रिशल्ल कब अटल्ल पद प{५ ॥चित. ॥ ३ ॥
१.पडगाहना २.प्रसन्न होता है ३.देखकर ४.कही भी जाओ ५.उसदिन ६.अच्छी घड़ी७.बिना वस्त्र ८.भोजन ९.नासादृष्टि धारणकर १०.पर पदार्थो से ११.विरक्त होऊ १२.पहचानूं १३.चिरकाल से भुलाई हुई १४.वर्षा १५.पत्थर १६.खुजली दूर करना १७.बाण १८.मोहरूपी दुश्मन १९.घास २०.सोना २१.एक समान गिनूं २२.पहाड़ की गुफा २३.चूंक दूं २४.दुखदायक २५.कमों की २६.सेना का २७.दमन करूं २८.रमण करूं २९.शान्ति रूपी बाग को जलाने वाली राग रूपी आग को शान्त करूं ३०.सूर्य ३१.दमन करूं ३२.क्षमा करूं ३३.नष्ट करके ३४.तीन शल्य रूपी योद्धा को ३५.पाऊँ।
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