Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 272
________________ (२२२) फरस' विषय में कारन वारन,' गरत' परत दुख. पावै है। रसना इन्द्रीवश झष जल में कंटक कंठ छिदावै है॥ हे. ॥ २ ॥ गंध लोभ पंकज मुद्रित में, अलि निज प्राण खपावै है । नयन विषय वश दीप शिखा में, अंग पतंग जरावै° है ॥ हे. ॥ ३ ॥ करन१ विषय वश हिरन अरन २ में, खलकर३ प्रान लुनावै है । 'दौलत' तज इनको जिन भज, यह गुरु सीख सुनावै है ॥ ४ ॥ कवि भूधरदास (५८७) राग - सारंग दुबिधा कब जैहै५ या मन की ॥ टेक ॥ कब निज नाथ निरंजन सुमिरौ,१६ तज सेवा जन जन की ॥ कब रुचि सौं पीवें दृग" चातक, बूंद अखय पद घन की। कब शुभ ध्यान धरौं समता गंहि, करूं न ममता तन की ॥१॥ कब घट अंतर रहे निरंतर दृढ़ता सुगुरु बचन की । कब सुख लहौ भेद परमारथ मिटै धारना' धन की ॥२॥ कब घर छोड़ होहु एकाकी २ किए लालसा२३ बन की। ऐसी दशा होय कब मेरी हो बलि-बलि वा छन की ॥ ३ ॥ कवि नयनानन्द (५८८) राग-असावरी अरे मन पापन२५ सों नित डरिये ॥ टेक ॥ हिंसा झूठ बचन अरु चोरी परनारी नहि हरिये६ । निज पर को दुख दायन डायन तृष्णा बेग विसरिये । अरे मन पापन सो नित डरिये ॥१॥ जासों पर भव बिगड़े वीरा ऐसो काज न करिये२८ । क्यों मधु बिन्दु विषय के कारण अंध कूप में परिये। १. स्पर्श २. हाथी ३. गिरता ४. पड़ता ५. दुःख पाता है ६. मछली ७. गले में कांटा छिदता है ८. कमल ९. भौरा १०. जलाता है ११. कर्ण-कान १२. जंगल १३. दुष्ट के हाथ में १४. नष्ट करवाता है १५. जायगा १६. स्मरण करो १७. पीना १८. आंख रूपी चातक १९. अक्षय २०. शरीर की २१. धन की इच्छा (धारण) २२. अकेला २३. इच्छा २४. क्षण की २५. पापों से २६. हरण मत कीजिए २७. दुख देने वाला २८. कीजिए २९. पड़िये। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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