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( २१० )
यही मन भावे शठ मुंह' बाये टंगा जो पावे ॥
नर रे ॥ ये विषय. ॥
तब चल तुम्हारे साथ सो एक बूंद को देखो, ना लखे वेदना घोर, सो ही गति संसारी, जीवों की भव वन में पंथी जीव, काल े गज जाने । कुल कुआँ कुटुम जन मधुमक्खी पहचानो 1 चहुंगति चारों अहि, निगोद अजगर अजगर मानो 1 जड़ आयु रातदिन काटत मूष खो | है विषय स्वाद मधुबिन्दु होत तरुवर रे । ये विषय. विद्याधर सतगुरु शिक्षा देत दयाकर माने तो दुख से छूट जाय संसार में सुख है शहद बिन्दु से लघुतर । दुख कूप पथिक से गुणा संसार दुःख सूं डरो, सुधी थर खलकाल बली से सुर हरि हली ये विषय भोग
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आतम नर 1
असुरादिक चक्रपति याने याने क्षणभर में विषधर हैं
जिये जगत
इनका काय न इनके त्यागे भये. 'नाथूराम'
अनन्ता अक्सर
थर रे ॥ ये विषय. ॥
हारे ।
मारे ।
दारुण में क्या
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अमर रे ॥
कवि भूधरदास
(५६०)
राग - जंगला
ये
कारे ।
करे
सुधि
टेक 11
आया रे बुढ़ापा मानी, विसरानी ॥ श्रवन की शक्ति घटी, चाल चले अटपटी, देह' लटी भूख घटी । लोचन" झरत पानी ॥ आया रे बुढ़ापा. दांतन की पंक्ति टूटी, हाडन" की संधि ? छूटी, काया की । नगरि लूटी, जात नहि पहिचानी || आया रे बुढापा.
॥ १ ॥
॥ २॥
विषय. ॥
१. मुँह खोले हुए २. हाथी - मृत्यु है ३. मधुमक्खी कुटुम्बीजन ४. चारों सांप-चार गतियाँ ५. दो चूहे - रात-दिन ६. शहद की बूंद छोड़ा ७. हलधर ८. कान ९. शरीर कमजोर हो गया १०. आँखें ११. हड्डियों १२. जोड़ ।
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