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(२१८) होत मदिरा से मति' हानी। मात अरु' युवती समजानी ।
वस्त्र की भी न शुद्धिठानी। कहो वृष की सुधि क्यों मानी ॥ दोहा—जादव कुल मद्य पीयके दीपायण के योग ।
भश्म भये हैं सहित द्वारिका फेर नहीं संयोग । मद्य सब सुधि नाशकारी ॥ तजो. ॥३॥ नीच कुकर खप्पर ज्यों है ॥ रजक की शिला होत त्यों है ॥
नीच अर उच्च सेय यों है। तजौं वैश्या बहु दुख को हैं ॥ दोहा- -चारुदत्त से सेठ हुये वेश्या” दुखरूप ।
सब धन खोय होय अति फीका पड़े गुंथगृह कूप ॥ तजो तातै शनि का यारी ॥ तजो. ॥४॥ रोज मृग आदि जीव धात् । शिकारी कहैं लोग तारौं ।
हो तबहु पाप खानि यातैं। पापकरि जाय नर्क सातै ॥ दोहा—ब्रह्मदत्त नृप खेट” दण्ड लहे विधि पंच ।
परभव में अति दुक्ख भोगिकै लह्यो खेट'° फल संच ॥ खेटते होत बहुत ख्वारी१ ॥ तजो. ॥५॥ लोभ के लम्पट जीव ज हैं। कपट की खनि सदा तैं हैं ।
करें चोरी पर गृहते हैं। खाय परिवार सहित वे हैं । दोहा—सत्यघोष मंत्री लहे चोरिरल शुभ पंच ।
मल्ल मुष्टि गौमय हराधन दंड तीन लहै खैच २ ॥ होय यही दुक्ख भयकारी ॥ तजो. ॥६॥ पर त्रिया सेवन दुख कारी। बिचारी ना कछु अविचारी ।
पति निज संग विचारण हारी। कहो कैसे होय तिहारी ॥ दोहा-रावण से बलवंत महा तीन खंड के ईश४ ।
पर त्रिया बांछे", दुख भोगे नर्कमांहि बहुरीश ।। पराई नारि तजो प्यारी ॥ तजो. ॥७॥ जुवातैं पांडव बक पलतें। मद्य से जादव बहुत गिलतै ।
वैश्या चारुदत्त मलतें। ब्रह्मदत्त नृप खेट बलतें ॥ दोहा- चोरी तैं शिवभूति दुखी रावण परत्रिय संग ।
१.बुद्धि नाश २.मां और स्त्री को समान मानता है ३.जल गये ४.धोबी ५.वासना के गृह रूप में ६.वेश्या का प्रेम ७.मारते है ८.सात ९.शिकार से १०.शिकार का फल ११.बरवादी १२.खींचकर १३.तुम्हारी १४.स्वामी १५.बांछा,
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