________________
(२१९) एक एक से हो अति दुखिया सातन को कहा रंग । कहा 'बुध महाचन्द्र' हारी ॥ तजो. ॥८॥
१८. मन कवि बुधजन
(५७९) रे मन मेरा, तू मेरो कह्यो' मान मान रे॥ रे मन ॥ टेक ॥ अनंत' चतुष्टय धार के तू ही, दुःख पावत बहुतेरे ॥ रे मन. ॥ १ ॥ भोग विषय का आतुर है कै, क्यों होता है चेरा ॥ रे मन. ॥ २ ॥ तेरे कारन गति गति मांही जनम लिया है घनेरा ॥ रे मन. ॥ ३ ॥ अब जिन चरन शरन गहि 'बुधजन' मिटि जावै भवफेरा ॥ रे मन. ॥ ४ ॥
कवि भूधरदास
(५८०)
राग - सोरठ मेरे मन सूवा जिनपद पीजरे बसि यार लाव न वार रे ॥ टेक ॥ संसार सेंबल वृच्छ सेवत गयो काल अपार रे ॥ विषय फल तिस१ तोड़ि२ चाखे१३ कहा देख्यो सार रे॥ मेरे. ॥१॥ तू क्यों निचिन्तो४ सदा तोको तकत५ काल मजार ६ रे । दावै अचानक आन तब तुझे कौन लेय उवार रे॥ मेरे. ॥ २ ॥ तू फस्यो कर्म कुफन्द भाई छुटै८ कौन प्रकार रे । तै मोह पंछी-वधक -विद्या लखी नाहि गंवार रे॥ मेरे. ॥ ३ ॥ है अजौं एक उपाय 'भूधर', छटै जो नर धार रे । रटि नाम राजुल रमन को पशुबंध छोड़न हार रे ॥ मेरे. ॥ ४ ॥
(५८१)
राग - धनासरी सो मत१ सांचो है मन मेरे ॥ टेक ॥ जो अनादि सर्वज्ञ प्ररूपित,२२ रागादिक बिन जेरे ॥१॥
१. कहा हुआ २. अनन्त दर्शन, ज्ञान, सुख, वीर्य ३. उत्सुक ४. दास ५. बहुत ६. भव चक्र ७. सुआ ८. पिंजड़ा ९. देर मत करो १०. सेमर का वृक्ष ११. उसका १२. तोड़कर १३. चखा १४. निश्चिन्त १५. देखता है १६. काल रूपी विलाप १७. पार लगायेगा १८.छुटे १९. मोहरूपी पक्षी २०. शिकारी की विद्या २१. सिद्धान्त, धर्म २२.कहा हुआ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org