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(१९८)
जाकरि' जैये जाहिर समय में, जो हो तब जा द्वार । सो बनि है टरि' है कछु नाही, करि लीनौं निरधार ॥३॥ अगनि जरावै पानी बोवै विछुरत मिलत अपार । सो पुद्गल रूपी मैं 'बुधजन' सबको जाननहार ॥४॥
(५३१)
राग-मालकोस अब तू जान रे चेतन जान, तेरी होवत है नितहान । रथ बाजि करी" असवारी, नाना विधि भोग तयारी ॥ टेक ॥ सुंदर तिय सेज सँवारी, तन रोग भयो या ख्वारी ॥१॥ ऊंचे गढ़ महल बनाये, बहु तोप सुभट रखवाये । जहाँ रुपया मुहर धराये, सब छोड़ि चले जम' आये ॥ २ ॥ भूखा है खानो लागै, छाया पदभूषण पागै । सत२ भये सहस२ लखि मांगै या तिसना नांही भागै ॥ ३ ॥ ये अथिर सौंज४ परिवारौ, थिर चेतन क्यों न सम्हारौ ।। 'बुधजन' ममता सब टारौ, सब आपा आप सुधारौ ॥४॥
कवि भूधरदास
(५३२)
राग-विहाग जगत जन जूवा५ हारि चले॥ टेक ॥ काम कुटिल संग बाजी मांडी उनकरि कपट छले ॥ज. ॥१॥ चार कषायमयी जहँ चौपरि६ पांसे जोग रले । इतसरबस उत" कामिनी कौंडी, इह विधि झटक चले ॥२॥ कूर खिलार ९ विचार न कीन्हों है ख्वार° भले ।। बिना विवेक मनोरथ करकै, 'भूधर' सफल फले ॥३॥
१.जिसके २.जाता है ३.टलना ४.निश्चय ५.होता है ६.सदैव नुकसान ७.घोड़ा ८.हाथी ९.सवारी १०.बरबादी ११.मौत आई १२.सौ १३.हजार १४.सामग्री १५.जुआ १६.चौपड़ १७.इधर १८.उधर १९.खिलाड़ी २०.बरबाद ।
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