Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 246
________________ (१९६) कवि भूधरदास (५२६) तू नित चाहत भोग नये नर पूरव पुन्य बिना किम पै है । कर्म संयोग मिलै कहिं जोग, गहै तब रोग न भोग सकै है ॥ जो दिन चार को व्योंत बन्यौ कहुँ तो परि दुर्गति में पछित है । यौं हित यार सलाह यही कि “गईकर जाहु" निवाह न है ॥ (५२७) गुरु कहत सीख इमि बार-बार, विषसम विषयन को टार टारं ॥ टेक ॥ इन सेवत अनादि दुख पायो, जनम मरन बहु धार धार ॥ गुरु. ॥१॥ कर्माश्रित बाधाजुत फांसी, बन्ध बढ़ावन द्वन्दकार ॥ गुरु. ॥ २ ॥ ये न इन्द्रि के तृप्ति हेतु जिमि, तिसन बुझावत क्षार २ बार ॥ गुरु. ॥ ३ ॥ इनमें सुख कलपना अबुध के 'बुधजन' मानत दुख प्रचार ॥ गुरु. ॥४॥ इन तजि ज्ञान पियूष ३ चख्यौ तिन, 'दौल' लही भववार" पार ॥ गुरु. ॥ ५ ॥ कवि बुध महाचंद्र (५२८) विषय रस खारे, इन्हें छाड़त क्यों नहि जीव । विषय रस खारे ॥ टेक ॥ मात तात नारी सुत बांधव मिल तोकू५ भरमाई । विषय भोग रस जाय नर्क तूं तिलतिल६ खण्ड लहाई ॥ विषय. ॥१॥ मदोन्मत्त वस मरने कू कपट की हथनी बनाई । स्पर्शन इन्द्रिय बसि होके आय पड़त गज खाई॥ विषय. ॥ २॥ रसना के बसि होकर मांछल८ जाल मध्य उलझाई । भ्रमर कमल२° बिच मृत्यु लहत है विषय नासिका पाई ॥ विषय. ॥ ३ ॥ दीपक लोय जरत, नैनूर बसि मृत्यु पतंग लहाई । कानन२२ के बसि सर्प हाय के पीजर मांहि रहाई ॥ विषय. ॥ ४ ॥ विष२३ खायें ते इक भव मांहि दुख पावै जीवाई । विषय जहर खाये तैं भव भव दुख पावै अधिकाई ॥ विषय. ॥ ५ ॥ १. कैसे पायेगा २. योग ३. पछतायेगा ४. शिक्षा ५. इस प्रकार ६. टाल दो ७. धारण करके ८. बन्ध बढाने वाली ९. द्वंद्व करने वाली १०. जिस प्रकार ११. तृष्णा १२. खारा पानी १३. अमृत १४. संसार को पार १५. तुझको १६. तिल के बराबर टुकड़े १७. हाथी गड़े में गिर जाता है १८. मछली १९. भौरा २०. कमल में २१. नयन, नेत्र २२. कानों के वश २३. जहर। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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