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(२०१) भावै फांसि फन्द बीच दीनो समुझाय रे ।
(५३९) बाल प. बाळ रह्यौ पीछे गृहभार' बह्यौ, लोक लाजरे काज बंध्यौ पापन को ढेर है। अपनो अकाज कीनौं लोकनमें जस लीनौं परभौ विसार दीनौ विसैव जेर है । ऐसे ही गई विहाय अलपसी रही आय, । नर परजाय यह अंधे की वटेर है । आये सेत° भैया अब काल है अबैया १ अहो जानी रे सयानैं तेरे अजों हू अंधेर है ॥
(५४०) चाहत है धन होय किसी बिध२, तौ सब काज सरै१३ जियरा जी । गेह चिनाय करूं गहना५ कछु, व्याहि सुता सुत बांटिये भाजी ॥ चिन्तत यौं दिन जाहि चले, जभ आनि अचानक देत दगाजी ६ ॥ खेलत खेल खिलारि गये, रहि जाय रूपी८ शतरंज की बाजी ॥
(५४१) तेज तुरंग' सुरंग भले रथ, मत्त मतंग° उतंग२१ खरे ही। दास२ खवास२३ अवास अटार, धनजोर करोर न कोश भरे ही । ऐसे बदै तो कह्या भयो हे नर, छोरि चके उठि अंत छरेही धाम खरे२५ रहे काम परे रहे, दाम डरे रहे ढाम२६ धरेही ॥
(५४२) दृष्टि घटी पलटी तन की छवि, बंक भई गति लंक" नई है । रूज रही परनी धरनी अति, रंक भयौ परियक° लई है ॥ कांपत नार बहै मुख लार, महामति संगति छारि गई है अंग उपंग पुराने परे, तिशना३३ उर और नवीर भई है ॥ १.घर का बोझ २.लोक लज्जा वश ३.हानि ४.संसार में यश प्राप्त किया ५.परभव ६.विषयों के कारण तंग है ७.छोड़कर ८.थोड़ी सी ९.संयोग से प्राप्त १०.श्वेत, सफेद ११.आनेवाला १२.किसी तरह १३.काम सिद्ध हो १४.घर बनवाकर १५.गझे बनवाऊं १६.धोखा १७.खिलाड़ी १८.मढ़ी हुई १९.घोड़ा २०.हाथी २१.ऊंचे २२.नौकर २३.नाई २४.अटारी २५.मकान खड़े रहे २६. स्थान पड़े रह गये २७.ज्योति कम हो गई २८.कमर झुक गई २९.परस्त्री में लीन ३०.पलंग पकड़ लिया ३१.गर्दन ३२.बुद्धि ३३.तृष्णा ।
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