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अपार ।
भवदुख कारज लेश न े दाम उधार 11
कानी' कौड़ी विषय सुख बिना देयै नहिं छूटि है दश दिन विषय विनोद फेर बहु विपति पंरपर । अशुचि गेह यह देह, नेह' जानत न मित्र बन्धु सनमंध और परिजन जे अरे अंध सब धंध जान स्वारथ के परतिन, अकाज अपनौ न कर मूढ़ राज अब समझ उर तजि लोक लाज निज काज कर, आज दाव है कहत गुर ॥
संगी ॥
पौरूष थकैंगे फेर पीछै१६
अहो आग आयै जब कुआ के खुदायै तब
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11
जोलौँ देह तेरी काहू रोग से न घेरी, जोलौं जरा नाहिं नेरी जासो" पराधीन परी है जोलौं जभनामा ११ बैरी देय न दमामा१२ जोलों मानै कान रामा १३ बुद्धि जादू १४ ना विगरि है ॥ तोलौं मित्र मेरे निज १५ कारज संवार
।
ले रे,
सौ बरष आयु ताका आधी तो अकारथ १९ आधी में अनेक रोग और हु संजोग केते बाकी अब कहा?? रही की बात यही खातिर २४ में आवै तो
कारज
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कहा करि झोंपरी १७
लेखा
ही
कौन काज १८
आप पर ||
अंगी
बाल वृद्ध
ऐसे बीत
जरन
ताहि तू नीके २३ खलासी २५
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करि देखा सब,
सोवत २०
है ॥
लागी,
सरि है ॥
विहाय रे
दशा भोग, जाय २९
रे ।
विचार सही,
लाय रे ।
मन
कर इतने में,
१. महत्वहीन २. कारण ३. थोड़ा भी ४. विषय भोग ५. अपने पर 'आत्मा' प्रेम नही जानता ६. अंग है ७. साथी ८. जब तक ९. बुढ़ापा नजदीक नहीं आया १०. जिससे पराधीन हो जाता है ११. मृत्यु रूपी शत्रु १२. नगाड़ा १३. स्त्री १४. बुद्धि बिगड़ न जाय १५. अपना काम संभाल ले १६. फिर क्या करेगा १७. झोपड़ी १८. काम बनेगा १९. व्यर्थ २०. सोकर बिता दिया २१. बीत जाते हैं २२. शेष कितनी बची है २३. अच्छी तरह २४. भरोसा, विश्वास २५. छुटकारा, मुक्ति ।
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