________________
(१९१)
(५१५)
राग - काफी होरी मेरो मन ऐसी खेलत होरी ॥ टेक ॥ मन मदंग साज कर त्यारी, तन को तमूरा बनोरी । सुमति सुरंग सरंगी बजाई ताल दोउ कर जोरी ॥ राग पांचौं पद कोरी ॥ मेरो. ॥१॥ समकित रूप नीर भरि झारी' करुणा केशर घोरी । ज्ञानमयी लेकर पिचकारी दोउ कर मांहि सम्होरी। इन्द्रिय पांचौ सखि बोरी ॥ मेरो. ॥२॥ चतुर दान' को है गुलाल सों, भरि-भरि मूठ चलो री तप मेवा की भरि निज झोरी यश को अबीर उड़ोरी रंग जिनधाम मचौ री ॥ मेरो. ॥३॥ 'दौलत' बाल खेलें ऐसी होरी भव-भव दुख टलौरी ।
शरणा ले इक जिनवर को री जग में लाज हो तोरी। मिले फगुवा शिवगोरी ॥ मेरो. ॥४॥
(५१६)
राग काफी ज्ञानी ऐसी होरी मचाई राग कियो विपरीत विपत घर कुमति कुसौति सुहाई ॥ टेक ॥ धार दिगंवर कीन्ह सुसंवर' निज-पर भेद लखाई । घात'२ विषयनि की बचाई ॥ ज्ञानी. ॥१॥ कुमति सखा भजि ध्यान भेद सम तन में तान उड़ाई । कुम्भक'३ ताल मृदंग सौं पूरक रेचक' बीन बजाई । लगन५ अनुभौ६ सौ लगाई॥ ज्ञानी. ॥२॥ कर्म बलीता रूप नाम अरि वेद सु इन्द्रि गनाई । दे तप अग्नि भस्म करि तिन को धूल अघाति उड़ाई ॥ करि शिवतिय की मिलाई१९॥ ज्ञानी. ॥३॥
१. तम्बूरा (एक वाद्य यन्त्र), २. सम्यक्त्व ३. जल का बर्तन (सुराही, घड़ा) ४. सम्हाली ५. दान रूपी गुलाल ६. यश रूपी अबीर ७. बालक ८. मोक्ष ९. प्रेम १०. खोटी सौत ११. कर्मों का आगमन रोकना १२. चोट १३-१४. प्राणायाम की क्रियायें १५. प्रेम १६. अनुभव १७. बत्ती १८. इन्द्रियों गिनाई १९. मिलना।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org