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खेलत फाग महामुनि. क्षमा रंग छिड़कत भविजन पर प्रेम रंग पिचकारी चलाई मोक्ष महल के द्वार फाग लखि, सेवक 'कुंज' रहे हंसाई' खेलत फाग महामुनि.
__ (५१९)
राग - काफी होली चेतन राज किशोरी, सुमति संग खेलत होरी । लोभ लाख के कुयश कुंकुमा' अपरे अबीर भरि कोरी ॥ मिथ्यात्वन के मुख पर मारत, कीच कालिमा घोरी ॥ वासना विषय मरोरी ॥ चेतन.
॥१॥ ज्ञान गुलाल भाल पर राजत सुगुन कुसुम रंग घोरी । प्रेम भई पिचकारी में भर छिरंक रहे चहुँ ओरी ॥ करे आनंद किलोरी ॥ चेतन.
॥२॥ मन मृदंग धुनि मधुर दुंदुभी, बाजत वीन बसोरी । शांति क्षमा दीक्षा मिलि गावत स्वातम रंग सवोरी ॥ मोक्ष मंदिर के ओरी॥ चेतन. ॥३॥ सुगुन सुधारक रिमिझिमि बरसे शीतल पवन झकोरी । 'कुंज' भये हर्षित सब मन में, चेतन समता गोरी ॥ शांति छाई चहुँ ओरी ॥ चेतन.
१५. भोग-विलास (पद ५२०-५२९) महाकवि बुधजन
(५२०)
राग - सोरठ मति' भोगन २ राचौ ३ जी, भव-भव में दुख देत घना ॥ मति. ॥ टेक ॥ इनके कारन गति-गति मांही, नाहक'५ नाचौ जी ।। झूठे सुख के काज धरममैं पाडौ खांचो'६ जी ॥ मति. ॥ १॥
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१. प्रसन होना २. कुंकुम ३. पाप ४. मरोड़ दी ५. चारों तरफ ६. किल्लोल ७. बांसुरी ८. हवा के झकोरे ९. प्रसन्न १०.रों तरफ ११. मत १२. भोगों में १३. लीन होओ १४. बहुत अधिक १५. व्यर्थ १६. अन्तर ।
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