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(१८९) उमंगि चिदानंद जी इत' आये इत आई सुमती गोरी ॥ निजपुर. ॥ १ ॥ लोक लाज कुलकानि' गमाई ज्ञान गुलाल भरी झोरी ॥ निजपुर. ॥२॥ समकित केसर रंग बनायो, चारित की पिचुकी छोरी" ॥ निजपुर. ॥ ३ ॥ गावत अजपा ज्ञान मनोहर अनहद झरसौ वरस्यो री ॥ निजपुर. ॥ ४ ॥ देखन आये 'बुधजन' भीगे, निरख्यो ख्याल अनोखो री ॥ निजपुर. ॥ ५ ॥
(५१०) अब घर आये चेतनराय, सजनी खेलौंगी मैं होरी ॥ टेक ॥ आरसं सोच कानि कुल हरिकै, धरि धीरज बरजोरी । अब. ॥ १ ॥ बुरी कुमति की बात न बूझै, चितवत है मो ओरी ॥ बा गुरुजन की बलि बलि जाऊँ दूरि करी मति भोरी ॥ अब. ॥ २ ॥ निज सुभाव जल हौज भराऊं घोरं निजरंग कोरी । निज़'२ ल्यों ल्याय३ शुद्ध पिचकारी थिरकन" निज मति दोरी ॥ अब. ॥ ३ ॥ गाय५ रिझाय आप वश करिकै, जावन धौ नहि पोरी । 'बुधजन' रचि मंचि रहूं निरंतर शक्ति अपूरव मोरी ॥ अब. ॥ ४ ॥
कवि भागचंद
(५११) जे सहज ६ होरी के खिलारी, तिन जीवन की बलिहारी ॥टेक ॥ शांत भाव कुंकुम रस चन्दन भर ममता पिचकारी । उड़त गुलाल निर्जरा संवर अंवर पहरै भारी ॥ जे. ॥ १ ॥ सम्यक दर्शनादि संग लैके,८ परम सुखकारी । भींज रहे निज ध्यान रंग में सुमति सखी प्रिय नारी ॥ जे. ॥ २ ॥ कर स्नान ज्ञान जल में पुनि, विमल गये शिवचारी ।। 'भागचन्द' तिन प्रति नित वंदन भाव समेत हमारी ॥जे. ॥ ३ ॥
(५१२) । सहज अबाध२° समाध२१ धाम तहाँ, चेतन सुमति खेलै होरी ॥ टेक ॥ निज गुन चंदन मिश्रित सुरभित२२ निर्मल कुंकुम रसघोरी२३ ।
१. इधर २. कुल की इज्जत ३. झोली ४. पिचकारी ५. छोड़ी ६. न - जपा अजपा ७. अद्भुत ८. आत्मा ९. आलस १०. भोली ११. घोलूं १२. अपने तक १३. लाकर १४. छिड़कना १५. गाकर १६. स्वाभाविक, सरल १७. वस्त्र १८. लेकर १९. मोक्ष गामी २०. बिना बाधा २१. समाधि २२. सुगंधित २३. रस घोला ।
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