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(७०) जगतप-हर भवि कुमुद निशाकर मोदन दौल चकोर नै ॥धनि. ॥ ४ ॥
(२०४) धनि मुनि जिन यह भाव पिछाना ॥धनि. ॥ टेक ॥ तनव्यय वांछित प्रापति मानी, पुण्य उदय दुख जाना ॥ १ ॥ एक विहारी सकल' ईश्वरता त्याग महोत्सव माना। सब सख को परिहार सार सूख जानि राग रुष माना ॥ २ ॥ चित स्वभाव को चिंत्य प्रान निज विमल ज्ञान छग साना । 'दौल' कौन सुख जान लह्यो तिन करो शांति रस पाना ॥ ३ ॥
. (२०५) धनि मुनि आत्तम हित कीना। भव असार तन अशुचि विषय विष, जान महाव्रत लीना ॥ टेक ॥ एक विहारी परीगह छारी परिसह सहत अरीना । पूरब तन तप साधन मानन, लाज गनी परवीना ॥ धनि. ॥ १ ॥ शून्य सदन गिर गहन शुफा में, पदमासन अनीना२। परभावन से भिन्न आप पद, ध्यावत मोह विहीना ॥२॥ स्वपर भेद जिनकी बुधि जिनमें, पागी५ वाहि६ लगीना । 'दौल' तास पद वारिज".रज से किस अघ करे न छीना ॥ ३ ॥
महाकवि बनारसी दास
(२०६) ऐसे मुनिवर देखे वन में जाके राग द्वेष नहि मनमें ॥टेक ॥ विरकत" भाव वृक्ष के नीचे बूंद सहे वह तन में । ऐसे झाड़ी जंगल नदी किनारे ध्यान धरें वो मन में ॥ ऐसे. ॥ गिरिवर मरुत शिखर के ऊपर ध्यान धरें गीषम में । ऐसे मुनिवर देखि 'बनारसि', नमन करत चरणन में ॥ ऐसे. ॥
१. भव्य रूपी कुमुद २. आनंद देना ३. चकोर ४. शरीर कृश करना ५. सभी स्वामित्व ६. महान् उत्सव ७. राग देव, ८. अपवित्र ९. छोड़ा, त्यागा १०. दुश्मन के ११. गिना १२. चतुर १३. लगाकर १४. पर भाव से १५. लीन १६. उसी में लगन १७. कमल १८. विरक्त भाव १९. वर्षा ।
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