________________
(१००) यह भव कुल यह तेरी महिमा फिर समझी जिनवानी । . इस अवसर मैं यह चपलाई', कौन समझ उर' आनी ॥२॥ चंदन काठ कनक के भाजन, भरि गंगा का पानी । तिल खलि रांधत मंद मीजो तुम क्या रीस विरानी ॥ ३ ॥ 'भूधर' जो कथनी सो करनी, यह बुधि है सुखदानी । ज्यों मशालची आप न देखे सो मति करै कहानी ॥४॥
(२८५)
राग-ख्याल गरव नहिं कीजै रे, ऐ नर निपट' गँवार ॥ टेक ॥ झूठी माया झूठी काया, छाया ज्यों लखि लीजै रे ॥ १ ॥ के छिन सांझ सुहागरू जोवन, कै दिन जग में जीजै२ रे ॥ २ ॥ बेगा३ चेत विलम्ब तजो नर बंध बदै थिति छीजै रे ॥३॥ 'भूधर' पलपल हो है भारो" ज्यों ज्यों कमरी" भीजै रे ॥ ४ ॥
(२८६)
राग पंचम जिनराज ना विसारो मति१६ जन्म वादि हारो ॥ टेक ॥ नर भौ नाहिं देखो सोच समझ वारो ॥ जिनराज. ॥१॥ सुत मात तात तरुनि', इनसौं ममत९ निवारो । सब ही, सगे गरज के दुख° सीर नहिं निहारो ॥ जिन. ॥ २ ॥ जे२ खांय लाभ सब मिलि दुर्गत२३ मैं तुम सिधारौ। नटका कुटुंब जैसा यह खेल सो विचारौ ॥ जिन. ॥ ३ ॥ नाहक२४ पराये काजै आप२५ नरक मैं पारो । 'भूधर' न भूल जग में, जाहिर२६ दगा है यारो ॥ जिन. ॥ ४ ॥
१.चंचलता २.मन में लाये ३.चंदन की लकड़ी ४.सोने का बर्तन ५.तिल की खली पकाना ६.डाट, स्पर्धा ७.मशाल लेने वाला ८.पक्का मूर्ख ९.देख लो १०.कितने क्षण ११.कितने दिन १२.जीना है १३.जल्दी १४.मारी होगा १५.जैसे कम्बल भीजने पर भारी हो जाता है १६.व्यर्थ में जन्म मत गमाओ १७.नरभव १८.युवति (स्त्री) १९.ममत्व दूर करो २०.दुख के साथी २१.मत समझो २२.लाभ सब मिल कर खाते है २३.दुर्गति में तुम जाते हो २४.व्यर्थ २५.स्वयं नरक में पड़ता है २६.स्पष्ट २७.धोखा।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org