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(१२४) पतित उधारक पतित' पुकारै अपनो विरद पिछानौ ॥ १ ॥ मोह मगर मछ दुख दावानल जनम मरन जल जानो ।। गति गति भ्रमन भँवर मैं ड्रबत, हाथ पकरि ऊंचो आनो ॥ २ ॥ जग में आन देव बहु हेरे, मेरा दुख नहि मानो । 'बुधजन' की करुना ल्यो साहिब, दीजे अविकल' थानो ॥ २ ॥
(३५०)
राग-असावरी जोगिया ताल धीमो तेतालो थे ही मोनै तारोजी, प्रभुजी कोई न हमारो ॥ थेही. ॥ टेक ॥ हूं एकाकि अनादि कालतें, दुख पावत हूं भारो जी ॥१॥ बिन मतलब के तुम ही स्वामी, मतलब कौ संसारो । जग जन मिलि मोहि जग में राखे तू ही काढ़न' हारो ॥ २ ॥ 'बुधजन' के अपराध मिटावो, शरन गह्यो छे थारी । भवदधि मांही डूबत मोकौं कर३ गहि आप निकारो ॥ ३ ॥
(३५१)
राग-असावरी मांझ ताल धीमो एक तालो प्रभुजी अरज हमारी उर ॥ प्रभुजी. ॥ टेक ॥ प्रभुजी नकर निगोधा" में रूल्यौ६ पायो दुःख अपार ॥१॥ प्रभुजी हूं पशुगति में उपज्यौ, पीठ सह्यौ अतिभार ॥२॥ प्रभुजी, विषय मगन मैं सुर भयो जात न जान्यौ काल ॥ ३ ॥ प्रभुजी, भव" भरमन 'बुधजन' तनों मेटो करि उपगार ॥ ५ ॥
(३५२) ___ राग-सारंग की मांझ ताल दीपचन्दी म्हारी सुणिज्यो° परम दयालु, तुमसों अरज करूं॥ टेक ॥ आन उपाव१ नहीं या जग मैं जग तारक जिनराज तेरे पांव२२ परू ॥ १ ॥ साथ अनादि लागि विधि२२ मेरी, करत रहत वेहाल इनको कौलों भरूं ॥ २ ॥
१.पतितों के उद्धारक २.पतित पुकार रहा है ३.हाथ पकड़ कर ऊपर लाओ ४.बहुत से देवता देखे ५.मोक्ष ६.आप' ७.मुझे ८.अकेला ९.बहुत अधिक १०.नि:स्वार्थ ११.निकालने वाले १२.आप की शरण ली है १३.हाथ पकड़कर १४.हृदय में धारण करो १५.निगोद में १६.भटका १७.संसार भ्रमण १८.उपकार १९.मेरी २०.सुनिये २१.दूसरा उपाय नहीं है २२.पैर पड़ता हूं २३.कर्म २४.कब तक।
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