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८. विनय महाकवि बुधजन (पद ३४२-३६३)
(३४२) म्हे तो थापर, वारी वारी वीतरागी जी, शांत छबी थांकी आनंद कारी जी ॥ म्हे तो. ॥ टेक ॥ इंद्र नरिंद्र फरिंद मिलि सेवत, मुनि सेवत रिधिधारी जी ॥ म्हे तो. ॥ १ ॥ लखि अविकारी पर उपकारी, लोकालोक निहारी जी ॥ म्हे तो. ॥ २ ॥ सब त्यागी जी कृपा तिहारी बुधजन ले बलिहारी जी ॥ म्हे.तो. ॥ ३ ॥
राग-अलहिया विलावल-ताल धीमा तेताला
(३४३) करम देत दुख जोर हो साइयां ॥ करम देत. ॥ टेक ॥ कैइ रावत पूरन की नैं, संग न छाड़त मोर' हो साइयां ॥ १ ॥ इनके वशर्ते मोहि बचायो, महिमा सुनि अति तोर'२ हो साइयां ॥ २ ॥ 'बुधजन' की विनती तुमही सौं, तुमसा प्रभुनहि और हो साइयां ॥ ३ ॥
राग-सारंग लहरि
श्री जी तरन हारा थे तो, मोने" प्यारा लागो राज ॥ श्री. ॥ टेक ॥ बार, सभा बिच गंध कुटी में राज रहे महाराजा ॥श्री. ॥ १॥ अनंत काल का भरम मिटत है सुनतहिं आप अबाज ॥श्री. ॥ २ ॥ 'बुधजन' दास रावरौ विनपै", थांसू सुधरै काज ॥ श्री. ॥ ३ ॥
राग-पूरवी एकताला
(३४५) नैन शान्त छवि देखि९ के दोऊ ॥ नैन. ॥ टेक ॥ अब अद्भुत दुति नहिं बिसराऊ, बुरा भला जग कोटि कहो कोउ ॥ नैन. ॥१॥ बड़° भागन यह अवसर आया, सुनियो जी अब अरज मेरी कहूं । भवभव में तुमरे चरनन' को 'बुधजन' दास सदा ही बन्यौ२२ रहूं ॥
१.मैं २.आप पर ३.न्योछावर हूं ४.आपकी ५.ऋद्धिधारी ६.विकार रहित ७.लोकालोक देखने वाले ८.बहुत अधिक ९.चक्कर १०.पूरे किये ११.मेरा १२.आपका १३.तुम्हारे जैसा १४.मुझे १५.समोशरण में १६.आपका सेवक १७.विनय करता हूं १८.आपको १९.संतुष्ट २०.बड़े भाग्य से २१.चरणों का २२.सदा बना रहूं।
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