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(१३९) 'बुधजन' संगति जिन गुरु की तै, मैं पाया मुझठाना ॥ मैं. ॥ ३ ॥
कविवर द्यानत राय
(३९०)
राग काफी अब हम आतम को पहचाना जी ॥ टेक ॥ जैसा सिद्ध क्षेत्र में राजत, तैसा घट' में जाना जी ॥ अब. ॥१॥ देहादिक पर द्रव्य न मेरे, मेरा चेतन वाना जी ॥ अब. ॥ २ ॥ 'द्यानत' जो जाने सो स्याना, नहि जानो सो दिवाना जी ॥अब. ॥ ३ ॥
कविवर बुधजन
(३९१)
राग - आसावरी जोगिया जल्द तेतालो हे आतमा ! देखी दुति तोरी रे ॥ हे आ. ॥ टेक ॥ निज को ज्ञात लोक को ज्ञाता, शक्ति नहीं कोरी रे ॥ हे आ. ॥ १ ॥ जैसी जोति सिद्ध जिनवर मैं तैसी ही मोरी रे ॥ हे आ. ॥२॥ जड़ नहिं हुवो फिरै जड़ के वसि, कै जड़की जोरी रे ॥ हे आ. ॥ ३ ॥ जग के काजि करन जग टहलै, 'बुधजन' मोरी मति भोरी रे ॥हे आ. ॥४॥
__(३९२)
राग - खमांज मेरा सांई तो मोमैं' नाहीं न्यारा, जानै सो जाननहारा ॥ टेक ॥ पहले खेद २ सह्यौ बिन जानै, अब सुख अपरंपारा ॥ मेरा. ॥१॥ अनंत चतुष्टय धारक गायक गुन'३ परजै द्रव सारा । जैसा राजल गंधकुटी मैं तैसा मुझमें म्हारा ॥ मेरा. ॥ २ ॥ हित अनहित मम पर चिकलपते करम बंध भये मारा । ताहि उदय गति गति सुख दुख में भाव किये दुख कारा ।मेरा. ॥३॥ काल लब्धि जिन आगम सेती, संशय भरम विदारा । 'बुधजन' जान करावन करता हो ही एक हमारा ॥मेरा.॥ ४ ॥
१. मेरा स्थान २. आत्मा में ३. समझदार ४. मूर्ख ५. कान्ति ६. शक्ति कम नहीं है ७. मेरी ८. जोड़ी ९. दुनिया के लिए१०. घूमता है ११. मुझमें १२. दुख १३. गुण १४. पर्याय १५. मेरा १६. पर विकल्प से १७. चारों गतियों में।
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