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(१४७)
विविध भोग उपभोग भोग, धरमतनो' फल होय ॥ हमारो. ॥ २ ॥ पूरी आयु विदेह भूपरे है राज सम्पदा भोय । कारण पंच लहै गहै दुद्धर, पंच महाव्रत जोय ॥ हमारो. ॥ ३ ॥ तीन जोग थिर सहै परिषह आठ करम मल धोय । 'द्यानत' सुख अनन्त शिव विलसै, जनमैं मरै न कोय ॥ हमारो. ॥ ४ ॥
(४१३)
राग-गौरी देखो ! भाई आतम राम विराजै ।।टेक ॥ छहों दरवः नव तत्व ज्ञेय है, आप सुज्ञायक छाजै ॥१॥ अर्हत सिद्ध सूरि गुरु मुनिवर पांचों पद जिहि मांही । दरसन ज्ञान चरन तप जिहि में पटतर कोउ नाहीं ॥२॥ ज्ञान चेतना कहिये जाकी, वाकी पुद्गल केरी । केवलज्ञान विभूति जासुकै,° आन१ विभौ भ्रमकेरी ॥३॥ एकेन्द्री पंचेन्द्री पुद्गल जीव अतीन्द्री ज्ञाता । 'द्यानत' ताही शुद्ध दरब को जानपनो सुखदाता ॥४॥
__ कविवर दौलतराम
(४१४) राचि २ रह्यो परमांहि तू अपनो रूप न जानै ॥ राचि. ॥ टेक ॥ अविचल चिनमूरत विनमूरत, सुखी होत तस" ठानै रे ॥१॥ तन धन भ्रात तात सुत जननी तू इनको निज जानै रे । ये पर इनहि वियोग योग में यौँ ही सुख दुख मानै रे ॥ २ ॥ चाह न पाये पाये तृष्णा, सेवत ज्ञान जघानै ८ रे । विपति खेत २°बिधि बंध हेत पै जान विषय रस खानै रे ॥३॥ नरभव जिन श्रुत श्रवण पाय अब कर निज सुहित सयानै रे। 'दौलत' आतम ज्ञान सुधारस पीवो सु गुरु बखानै २ रे ॥४॥
१. भोगने के लिए २. धर्म का ३. होकर ४. भोग कर के ५. तीन योग (मन बचन काय) ६. द्रव्य ७. जिसमें ८. उसके ९. समान १०. जिसके ११. अन्य वैभव १२. लीन हो रहा १३. चैतन्य मूर्ति १४. अमूर्त १५. वैसा ठानता है १६. बिछुड़ना १७. मिलना १८. नष्ट करता है १९. विपत्ति रूपी खेत २०. कर्म बंध का धारण २१. विषय रस की खान ।
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