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और बात सब बन्ध करत है या रति बन्ध कतरना रे ॥ आतम. ॥ ३ ॥ पर परणति में परवश पर हैं ताते फिर दुख भरना रे ।। 'चम्पा' याते पर परणति तजि निज रचि काज सुधरना रे ॥ आतम. ॥ ४ ॥
कविवर ज्योति
सिट न अन्त अनादिकर्मवश, जीवन
शत पावत अ
अब हम अमर भये न मरेंगे हमने आतम राम पिछाना ॥ टेक ॥ जल में गलत ना अग्नि में, असि से कहे न विष से हाना । चीर फाड़ ना पेरत कोल्हू लगत ना अग्नी बात निशाना ॥१॥ दामिन परत न हरत बज्र गिर, विषघर डस न सके इक जाना । सिंह व्याघ्र गज ग्राह' आदि पशु, मार सके कोई दैत्य न दाना' ॥ २ ॥
आदि न अन्त अनादि निधन यह नहिं जन्मा नहिं मरन सयाना । पाय पाय पर्याय कर्मवश, जीवन मरण मान दुख आना ॥ ३ ॥ यह तन नशत और तन पावत, और न नशत पावत अरु नाना । ज्यों बहु रूप धरे बहु रूपी यों बहु स्वांग धरे मनमाना ॥ ४॥ ज्यों तिल३ तेल दूध में घृत, त्यो मन में आतमराम समाना । देखत एक एक हो समुझत, कहत एक ही मनुज अजाना ॥ ५ ॥ पर पुद्गल अरु पर यह आतम नहीं एक दो तत्व प्रधाना । पुद्गले मरत जरत अरु विनसत, आतम अजर अमर गुणवाना ॥६॥ अमर रूप लख अमर भये हम, समझ भेद ओ वेद बखाना । ज्योति जगी श्रुति की घट अन्तर 'ज्योति' निरन्तर उर हर्षाना ॥ ७॥
कवि न्यामत
(४४२) आप में जब तक कि कोई, आपको पाता नहीं। मोक्ष के मंदिर तलक, हरगिज कदम आता नहीं ॥ टेक ॥ वेद या कूरान९ या पूराण° सब पढ़ लीजिए । आपको जाने बिना, मुक्ती कभी पाता नहीं ॥१॥ भाव करुणा कीजिए यह ही धरम का मूल२२ है । १. पर परणति त्याग कर २. आत्मलीन होकर ३. पहचाना ४. गलता नहीं है ५. तलवार से ६. विष से हानि ७. आग नहीं लगती ८. विजली ९. सांप काट नहीं सका १०. मगर ११. दानव १२. अनेक १३. तिल में तेल १४. दूध में घी १५. अज्ञान १६. जलता १७. नष्ट होता है १८. शाम १९. कुरान २०. पुराण २१. मोक्ष २२. बड़ ।
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