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(१७३)
कवि मक्खनलाल
(४७०) कर्मनि की गति न्यारी, किसी से कभी टरे न टारी । रामचन्द्र से नामी' राजा वन-वन फिरे दुखारी ॥ किसी. ॥ जन्मत कृष्णा न मंगल गाये मरत न रोवनहारी ॥ किसी.॥ पांचों पांडव द्रौपदी नारी, विपति भरी अतिभारी ॥ किसी. ॥ ऋषभ देव प्रभु छहों मास लों, फिरे बिना आहारी ॥ किसी. । इन्द्र धनेन्द्र खगेन्द्र चक्रधर हलधर कृष्णा मुरारी ॥ किसी.॥ 'मक्खन' जिन इन कर्मन जीता, तिन चरनन बलिहारी ॥ किसी.॥
कवि बुधमहाचंद्र
(४७१) मिटत नहीं मेटें से या तो होनहार सोई होय ॥टेर ॥ माघनंद मुनिराज 3 जी गये पारण हेत । व्याह रच्यो कुमहार की धीतूं वासण घड़ि-घड़ि देत ॥ मिटत. ॥१॥ सीता सती बड़ी सतवंती जानत हैं सब कोय । जो उदियागत टलैं नहीं टाली कर्म लिखा सो ही होय ॥ मिटत. ॥ २ ॥ रामचन्द्र सो भर्ता जाके मंत्री बड़े विशेष । सीता सुख भुगतन नहीं पायो भावनि' बड़ी बलिष्ट ॥ मिटत. ॥ ३॥ कहाँ कृष्ण कहाँ जरद कुँवरजी कहाँ लोहा को तीर । मृग के धोके वन में मार्यो बलभद्र भरण२ गये नीर ॥ मिटत. ॥ ४ ॥ 'महाचन्द्र' तै नरभव पायो तू नर बड़ो अज्ञान । जे सुख भुगते भाव प्रानी भज लो श्री भगवान ॥ मिटत. ॥ ५ ॥
कवि भैया भगवतीदास
(४७२)
राग-रामकली जिया को मोह महा दुखदाई॥ टेर ॥ काल अनंत जीति जिहं३ सख्यो, शक्ति अनंद छिपाई ।
१.टालने पर भी नहीं टलती २ प्रसिद्ध ३.कुबेर ४.गरुड़ ५.विष्णु ६.होनहार ७.पारणकरने ८.पुत्री से ९.बर्तन १०.पति ११.होनी १२.भरने १३.जिसने रखा।
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