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(१८०) जादव कुल आकास चन्द्रसम उपजे हर्ष नवीनी' हो ॥ देखो. ॥ ४ ॥ ऐसे हर्ष देखन में बुध महाचन्द्र मति दीणी' हो ॥ देखो. ॥ ५ ॥
१३.उत्तम नरभव (४८९-५०६) राग-कनड़ी
(४८९)
महाकवि बुधजन उत्तम नरभव पायकै', मति भूलै रे रामा ॥ मति भूलै ॥ टेक ॥ कीट पशू का तन जब पाया, तब तू रह्या निकामा । अब नरदेही पाय सयाने क्यों न भजै प्रभुनामा ॥ मति. ॥१॥ सुरपति याकी चाह करत उर, कब पाऊं नरजामा । ऐसा रतन पायकै भाई क्यों खोवत बिन कामा॥ मति. ॥ २ ॥ धन जोवन तन सुन्दर पाया, मगन भया लखि° भामा । काल अचानक झटक खायगा परे रहैगे ठामा ॥ मति. ॥ ३ ॥ अपने स्वामी के पद पंकज २ करो हिये विसरामा३ । मैंटि कपट भ्रम अपना 'बधजन' ज्यौं पावौ शिवधामा ॥ मति. ॥ ४ ॥
कवि भागचन्द्र राग-खमाज
(४९०) सारौ५ दिन निरफल ६ खोयबौ करै छै। नरभव लहिकर प्रानी विन ज्ञान, सारौ दिन निर. ॥ टेक ॥ परसंपति लखि निज चितमाही, विरथो मूरख रोयवो"करै छै । सारौ. ॥१॥ कामानलतें जरत सदा ही, सुन्दर कामिनी जोयवो करै छै ॥ सारौ. ॥ २ ॥ जिनमत तीर्थस्थान न ठाने, जलसौं पदगल धोयवो° करै छै॥ सारौ. ॥ ३ ॥ 'भागचन्द' इमि धर्म बिना शठ. मोहनींद सोयवो२१ करै छै॥ सारौ. ॥४॥
१. नवीन २. बुद्धि ही ३.पाकर ४.भगवान ५.निकम्मा ६.मनुष्य शरीर ७.भगवान का नाम ८.इसकी ९.मनुष्य शरीर १०.स्त्री देखकर ११.स्थान, जगह १२.चरण कमल १३.विश्राम १४.दूर करके १५.सारा दिन १६.व्यर्थ १७.व्यर्थ १८.रोया करता है १९.देखा करता है २०.धोया करता है २१.सोया करता है।
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