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(१७२) कवि जिनेश्वरदास
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पद-मराठी करमवश चारों गति जावै, जीव कोई संग नही जावै', जीव कोई संग नही आवै ॥ टेर ॥ अकेलो सुरगों में जावै, अकेलो नकर धरा धावै ।
अकेलो गर्भ मांहि आवै, अकेलो मनुष जन्म पावै । दोहा-बूढ़ा होवै आपही थरहर कांपे देह ।
बल वीरज जासों रहे सजी, धरके तजै सनेह ॥ सेह तज द्वारा में ल्या₹ जीव कोई संग नहीं आवै ॥ जीव. ॥ १ ॥ उदयवस रोग जवै आपै बहुत फिर मन में पछतावै ।
एक छिन थिरता नहिं पावै कुटुंब सब बैठो बिललावै ॥ दोहा-चलै दवाई एक ना, बड़े बड़े उपचार ।
कोई काम नहिं आवई संजी गये वैद्य° सब हार ॥ विपति में वहुविधि वललावै
॥जीव. ॥ २ ॥ अकेलो मरन दुख पावै, अकेलो दूजी गति जावै ।
अकेलो पाप विर्षे धावै, अकेलो धर्मी कहलावै ॥ दोहा- पाप उदय नारिक बने, दुखी रहै दिनरात ।
पुण्य उदय सब संपदा सजी, लहै अकेलो भ्रात ॥ सुखी सुरगति में कहलावै
॥जीव. ।। ३ ।। अकेलो मिथ्या परिहारै' अकेलो समकित उरधारै ।
अकेलो कर्म सभी टारै, अकेलो अक्षय पद धारै॥ दोहा-यही. अकेलो जगत में यही आतमाराम ।
कही जिनेश्वर देव ने सजी गई सुबुधि गुणधान । स्वहित निज संपति दरसावै
॥ जीव. ॥ ४ ॥
१.जाता है २.नहीं आता ३.स्वर्ग ४.दौड़ता है ५.प्रेम ६.घर छोड़कर ७.सारा परिवार बैठ कर रोता है ८.औषधि ९.कोई काम नहिं आता १०.सभी वैद्य हार गये ११.छोड़ता है १२.सम्यक्त्व धारण करता है।
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