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(१६९) महाकवि भागचंद
(४६२)
राग-ठुमरी जीवनि के परिणामनि की यह, अतिविचित्रता देखहुँ' दुगनी ॥ टेक ॥ नित्य निगोदमाहित कढ़िकर नर' परजय पाय सुखदानी । समकित लहि अंतर्मुहूर्त मैं केवल' पाय वरै शिवरानी ॥ जीवनि. ॥ १ ॥ मुनि एकादश गुण थानक चढ़ि गिरत तहातै चित भ्रम ठानी । भ्रमत अर्ध पुद्गल आवर्तन किंचित उन काल परमानी ॥ जिवनि. ॥ २ ॥ निज परिणामनि की संभाल में तातै गाफिल मत है प्रानी । बंध मोक्ष परिनामनि ही सो कहत सदा श्री जिनवर वानी ॥जिवनि. ॥ ३ ॥ सकल उपाधि निमित भावनि सों, भिन्न सुनिज परनति को छानी । ताहि जानि रुचि ठानि होहु थिर, 'भागचन्द' यह सीख सयानी ॥जिवनि. ॥ ४ ॥
कवि जिनेश्वरदास
(४६३)
राग ख्याल सुनियो भविलो को करमनि की गति वांकड़ी ॥ सुनियो॥ टेर ॥ तीरथ ईश जगत पति स्वामी रिषभ देव महाराज । एक बर्ष आहार न मिलियो, भयो असंभव काज जी ॥ सुनियो. ॥१॥ अर्क कीर्ति परनारी कारन, जय कुमार से हार । कीरति खोय दई सब छिन में कर्म उदय अनिवार°जी ॥ सुनियो. ॥ २ ॥ विधिवस रावन हरी जानकी अपजस भयो अपार । पांडव पांच भेषधर निकले, तब पायो आहार जी॥ सुनियो. ॥ ३ ॥ छप्पन कोडि यदु वंश कहावे हरि त्रिखंड पतिसार । जनमत २ मंगल भयो न जिनके मरे न रोवन ३ हार जी ॥ सुनियो. ॥ ४ ॥ कर्मनि की गति रुकै न काहू, तीनलोक मंझार । एक 'जिनेश्वर' भक्ति जगत में शिवसुख दायक सारजी ॥ सुनियो. ॥ ५ ॥
१.देखो २.मनुष्य पर्याय ३.केवल ज्ञान पाकर ४.मोक्ष प्राप्त करता है ५.बेपरवाह ६.अपनी ७.भव्यजन ८.टेढ़ी ९.परस्त्री के कारण १०.अनिवार्य ११.कर्मवश १२.जन्मते १३.रोनेवाला।
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