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(१६५) कविवरण न्यामत
(४५३) जब हंस' तेरे तन का कहीं उड़के जायगा। अय दिल बता फिर किससे तूं नाता' लगायेगा ॥ १ ॥ यह भाई बन्धु जो तुझे, करते हैं आज प्यार । जब आज बने कोई नहीं काम आयगा ॥२॥ यह याद रख सब हैं तेरे जी के जीते यार । आखिर तू एकाकी ही, यम दुख उठायेगा ॥३॥ सब मिल के जला देंगे तुझे जाके आग में । एक छिन की छिन में तेरा पता भी न पायगा ॥ ४॥ कर नाश आठ कर्म का निज-शत्रु जानकर । वे नाश किये इनके तूं मुक्ती न पायगा ॥५॥ अवसर यही है जो तुझे करना है आज कर । फिर क्या करेगा काल जब मुँह बाके आयगा ॥६॥ अथ 'न्यामत' उठ चेत क्यों, मिथ्यात्व में पड़ा । जिन धर्म तेरे हाथ यह, मुश्किल से आयगा ॥७॥
कवि मंगल
(४५४) सुन चेतन प्यारे, साथ न चले तेरी काया ॥ टेक ॥ मलमल धोया चोवा चंदन, इतर फुलेल लगाया । सबरी द्रव्ये भई अपावन, कुछ भी हाथं न आया ॥ सुन. ॥१॥ रक्षा करते-करते तूने, क्यों मन को भरमाया । इसको रोते चले गये सो उसने जग भरमाया ॥ सुन. ॥ २ ॥ यह है इस धोखे की टाटी, अरु दर्पण की छाया । जिसने इससे प्रीति लगाई, अन्त समय पछताया ॥ सुन. ॥ ३ ॥ इसके पोखन' कारण पांचहुं करण विषय में धीया । जीरण२ होते-होते दुल गये ज्यों तरुवर की छाया ॥ सुन. ॥ ४ ॥ मानुज भव को सुरपति३ तरसे बड़ी कठिन से पाया । १.आत्मा २.सम्बन्ध जोड़ेगा ३.कोई मुसीबत आ जाय ४.मोक्ष ५.मुंह खोलकर ६.शरीर ७.सुंगधित द्रव पदार्थ ८.सारी ९.प्रेम किया १०.पुष्ट करने के लिए ११.पांचो इन्द्रियों के विषय १२.बूढे होते-होते १३.इन्द्र।
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