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राग-सारंग तन देख्या अथिर घिनावना ॥ तन. ॥ टेक ॥ बाहर चाम' चमक दिखलावै माहीं मैल अपावना । बालक ज्वान बुढ़ापा मरना, रोक शोक उपजावना' ।। तन. ॥१॥ अलख अमूरति, नित्य निरंजन, एक रूप निज जानना । वरन फरस रस गंध न जाके पुन्य पाप विन मानना ।। तन. ॥ २ ॥ करि विवेक उर धरि परीक्षा भेद विज्ञान विचारना । 'बुधजन' तन” ममत मेटना, चिदानंद पद धरना ॥ तन. ॥ ३ ॥
(४४८) बाबा ! मैं न काहू का कोई नहि मेरा रे॥ बाबा. ॥ टेक ॥ सुर नर नारक तिर्यक'° गति मैं मोको करमन घेरा रे ॥ बाबा. ॥ १॥ मात पिता सुत तियकुल परिजन, मोह गहल१ उरझेरा २ रे । तन धन वसन३ भवन जड़ न्यारे हूं चिन्मूरति न्यारा रे ॥ बाबा. ॥ २ ॥ मुझ विभाव जड़ कर्म रचंत हैं करमन हम को फेरा रे । विभाव चक्र तजि धारि सुभावा, अब आनंद घन हेरा रे ॥ बाबा. ॥ ३ ॥ खरच५ खेद नहि अनुभव करते निरखि चिदानंद तेरा रे । जप तप व्रत श्रुत सार यही हे, 'बुधजन' कर न अवेरा'६ रे ॥ बाबा. ॥ ४ ॥
महाकवि भूधरदास
मात पिता रज वीरज सौं उपजी सब धान कुधान भरी है । माखिन ८ के पर माफिक'९ बाहर चामके° बेठन२१ वेढ़ धरी है । नाहिं तो आय लगै अब ही, वक२ बायस२३ जीव वचैन घरी है । देह दशा यह दीखत भ्रात, घिनात२४ नहीं किन२५ वुद्धि हरी है ॥
१.घिनौना २.चमड़ा ३.अन्दर ४.रोग ५.उत्पन्न करना ६.वर्ण ७.स्पर्श ८.जिसके ९.शरीर से १०.तिर्यंच गति ११.झंझट में १२.उलझना १३.वस्त्र १४.चक्कर लगवाया १५.खर्च करके १६.देर १७.उत्पन्न हुई १८.मक्खन १९.तरह २०.चमड़े का २१.वंधन से लिपटा २२.बगुला २३.कौआ २४.घृणा करना २५.किसने बुद्धि हरली।
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