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(१५९)
कवि शिवराम
(४३९) जाना नहीं निज आत्मा, ज्ञानी हुये तो क्या हुये । ध्याया नहीं शुद्धात्मा ध्यानी हुये तो क्या हुये ॥ टेक ॥ ग्रन्थ सिद्धान्त पढ़ लिये, शास्त्री' महान बन गये । आत्मा रहा बहिरात्मा, पण्डित हुये तो क्या हुये ॥ जाना. ॥१॥ पंच महाव्रत आदरे घोर तपस्या भी करी । मन की कषायें ना मरीं साधु हुये तो क्या हुये ॥ जाना. ॥२॥ माला के दाने हाथ में मनुआ फिरे बाजार में । मन की नहीं माला फिरे जपिया' हुये तो क्या हुये ॥ जाना. ॥ ३ ॥ गाके बजाके नाचके पूजन भजन सदा किये । निज ध्येय को सुमरा नहीं पूजक हुये तो क्या हुये ॥ जाना. ॥ ४॥ मान बड़ाई कारने दाम हजारों खरचते । भाई तो भूखों मरें दानी हुये तो क्या हुये ॥ जाना. ॥ ५ ॥ करें न जिनवर दर्शको° सेवन करें अनभक्ष को । दिल में जरा दया नहीं, जैनी हुये तो क्या हुये ॥जाना. ॥ ६ ॥ दृष्टी२ अन्तर फेरते, औगुन ३ पराये हेरते । 'शिवराम' एकहि नाम के सायर हुये तो क्या हुये ॥ जाना. ॥ ७ ॥
कवियित्री चम्पा
(४४०) आतम अनुभव करना रे भाई ॥ आतम. ॥ टेक ॥
और जगत की थोथी ५ बाते तिनके बीच न पड़ना रे । काल अनन्ते दिन यों बीते एकौ ६ काज न सरना रे ॥ आतम. ॥ १ ॥ अनुभव कारन श्री जिनवानी ताही" को उर धरना रे । या बिना कोउ हितू ना जग में दिन इक नाहिं विसरना रे ॥ आतम. ॥ २ ॥ आतम अनुभव ते शिवसुख हो फेर नहीं जहाँ मरना रे।
१. शास्त्रों को जानने वाला २. आदर करना ३. क्रोध, मान, माया, लोभ ४. मन ५. जप करने वाला ६. स्मरण नहीं किया ७. पूजा करने वाला ८. के लिए ९. हजारों रुपये खर्च करते हैं १०. दर्शन ११. अभक्ष्य भक्षण करता है १२. आत्म निरीक्षण नहीं करते १३. दूसरे के अवगुण देखते १४. शेर करने वाले १५. व्यर्थ की बाते १६. एक भी काम सिद्ध न हुआ १७. उसी को १८. हितैषी १९. नहीं भुलाना।
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