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नर आतमज्ञानी ॥टेक
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॥ १ ॥
जानत क्यों नहि रे, हे रागद्वेष पुद्गल की संपति, निहचै' शुद्ध निशानी जाय नरक पशु नरगति में यह परजाय विरानी । सिद्ध स्वरूप सदा अविनाशी, मानत विरले प्राणी ॥ २ ॥ कियो न काहू हरे" न कोई गुरू सिख कौन कहानी जनम-मरन मल रहित विमल है कीच विना जिमि पानी ॥ ३ ॥ सार पदारथ हैं तिहुँ जग में नहिं क्रोधी नहिं मानी । 'दौलत' सो घर मांहि विराजे, लखि हूजे शिवथानी ॥ ४ ॥
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महाकवि बनारसीदास
(१५०)
कविवर दौलतराम राग - विहागरो
(४१९)
विराजै रामायण” घट मांहि मूरख माने नाहिं
हम बैठे अपनी मौन
सौं
॥ ॥
दिन दश के महिमान जगत जन, बोल' विगारै कौन सौं ॥ १ ॥ गये विलाय' भरम" के बादल परमारथ पथ पौन ११ सौं अब अंतर गति भई हमारी, परचै १२ राधा १ ३ रौन सौ ॥ २ ॥ प्रगटी सुधा पान की महिमा, मन नहि लागै बौन १४ सौं । छिन न सुहाय और रस फीके, रुचि साहिब के लोन १५ सौं रहे अघाय पाय सुख संपति को निकरै निज भौन १६ सौं सहज भाव सद्गुरू की संगति सुरझै ७ अब गौन" सौं ॥ ४ ॥
॥ ३ ॥
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(४२०)
राग - सारंग
(४२१) राग सारंग वृन्दावनी
मरमी होय मरम सो जाने ॥ ॥टेक ॥
विराजै
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१. निश्चय २.दूसरी पर्याय ३. नाश न होने वाली ४. किसी ने बनाया नहीं ५. कोई चुराता नहीं ६. शिक्षा ७. चुपचाप ८. बोलकर विगाड़ना ९. छिप गये १०. भ्रम के बादल ११. पवन से १२. परिचित होना १३. आत्म रमण से १४. एक प्रकार कामकोद्दीपक द्रव्य १५. नमक १६. भवन से १७. सुलझ गये, निकल गये १८. आगमन १९. यहां रामायण का रूपक बांधा गया है २०. मर्म जानने वाला ।
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