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(४०४) हम लागे आतम राम सों ॥टेक ॥ विनाशीक' पुद्गल की छाया, कौन रमै धन मान सो ॥ हम. ॥ १ ॥ समतासुख घट में परगास्यो' कौन काज है काम सों । दुविधा भाव जजांजुलि दीनौं मेल भयो निज स्वाम सों ॥ हम. ॥ २ ॥ भेदज्ञान करि निज परि देख्यौ कौन बिलोकै चाम सौं । उरे परै की बात न भावै, लौ लाई गुण ग्राम सो ॥ हम. ॥ ३ ॥ बिकलप भाव रंक सब भाजे झरि चेतन अभिराम सो। 'द्यानत' आतम अनुभव करिकै खूटे२ भव दुखधाम सों । हम. ॥ ४ ॥
(४०५) आतम जानो रे भाई ॥टेक ॥ जैसी उज्जल आरसी३ रे, तैसी आतम४ जोत । काया करमनसों जुदी रे, सबको करै उदोत" आतम. ॥१॥ शयन दशा जागृत दशा रे, दोनों विकलप रूप । निरविकलप शुद्धातमा रे चिदानंद चिद्रूप आतम. ॥२॥ तन बच सेती भिन्न कर रे, मनसों निजलौ लाय । आप आप जब अनुभवै रे, तहाँ न मन बच काय ॥ आतम. ॥३॥ छहौं दरब नव तत्वौं रे, न्यारो आतम राम। 'द्यानत' जे अनुभव करें रे, ते पावे शिवधाम आतम. ॥४॥
(४०६) मगन रहु रे ! शुद्धातम में मगन रहु रे ॥ टेक ॥ राग दोष परको उतपात निहचै° शुद्ध चेतनाजात ॥ मगन. ॥ १॥ विधि निषेध को खेद२२ निवारि आप निहारि ॥ मगन. ॥ २ ॥ बंध मोक्ष विकलप करि दूर, आनंद कंद चिदानंद सूर२२ ॥ मगन. ॥ ३ ॥ दरसन ज्ञान चरन समुदाय ‘द्यानत' ये ही मोक्ष उपाय ॥ मगन. ॥ ४ ॥
१. नष्ट होने वाला २. लीन होना ३. प्रगट हुआ ४. काम वासना ५. त्याग दिया ६. आत्म स्वरूप से ७. चमड़े से ८. इधर उधर की ९. अच्छी नहीं लगती १०. लो लगाई ११. झड़ कर १२. छूटना १३. दर्पण १४. आत्म ज्योति १५. प्रकाश १६. निर्विकल्प १७. अपने स्वरूप में लौ लगाकर १८. लीन रहो १९. उपद्रव २०. निश्चय २१. चेतना जन्म २२. खेद दूर करके २३. सूर ।
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