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(१२७) घना दिना को दुखी दयानिधि औसर पायो आज। 'बुधजन' सेवक ठाड़ौ बिनवै कीज्यौ मेरे काज ॥ ४ ॥
(३५९) म्हारी कौन सुनै, थे तौ सुनिल्यौ श्री जिनराज ॥ टेक ॥
और सरन मतलब के गाहक म्हारो सरते न काज। मोसे दीन अनाथ रंक कौ, तुमते बनत इलाज ॥ १ ॥ निज पर नेकु दिखावत नाही, मिथ्या तिमिर समाज । चंद प्रभू परकाश करो उर पाऊं धाम निजाज ॥ २ ॥ थकित भयौ हूं गति गति फिरतां दर्शन पायौ आज । बारंबार बीनवै 'बुधजन' सरन गहे की लाज ॥ म्हारी. ॥ ३ ॥
(३६०)
राग-केदारो एक तालो अहो मेरी तुमसौं बीनती, सब देवनि के देव ॥ अहो. ॥ टेक ॥ ये दूजनजुतरे तुम निर३, जगत हितू स्वयमेव ॥ १ ॥ गति अनेक में अति दुख पायौ, ली. जन्म अछेव"। हो संकट हरदे६ बुधजन कौ भव भव तुम पद सेव ॥ २ ॥
(३६१)
राग-सोरठ म्हारौ मन लीनौ छै थे मोहि, आनंद घन जी ॥ म्हारो. ॥ टेक॥ ठौर" ठौर सारे जग भटक्यो ऐसो मिल्यौ नाहिं कोय । चंचल चित मुझ अचल भयौ है निरखत चरनन तोय ॥ १ ॥ हरज भयो सो उर ही जानैं वरनौं जात न सोय।।
अनंत काल के कर्म नसैगे, सरधा आई जोय ॥ म्हारो. ॥ २ ॥ निरखत ही मिथ्यात मिटयौ सब ज्यो रवि तैं दिन होय। बुधजन उरमें २ राजौ नित प्रति, चरन कमल तुम दोय ॥ ३ ॥
१.बहुत दिनो से २.मेरी ३.सब ४.स्वार्थ के ग्राहक है ५.मेरा काम सिद्ध नहीं होता ६.गरीब ७.तुमसे इलाज बनता है ८.स्व-पर ९.कुछ भी नहीं दिखाता १०.निजआज ११.थक गया हूं १२.दोषों से युक्त १३.दोषरहित १४.हितैषी १५.निर्दोष १६.दूर कर दो १७.आपने मेरा मन मोह लिया १८.जगह-जगह १९.तुम्हारे चरणों को देखते हैं २०.नष्ट होंगे २१.जैसे सूर्य से दिन होता है २२.हृदय में विराजो ।
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