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( १३२ )
संपति इनके हाथ,
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॥ २॥
मेरे कर्म अनादि साथ, मेरी मोको देते दुख दिनरात बैरी धर्म भुलाने वाले ॥ १ ॥ मैंने कीना नहीं विगार' तौ भी देते दुख अपार इनका ऐसा है इखत्यार' नाहक दुख दिखाने वाले मैं तो सदा अकेलो एक मेरे दुश्मन कर्म अनेक सबकैं दुख देने की टेकर, कातिल ये कहलाने वाले ॥ ३ ॥ देवैं गाफिल' करके मार लेते बैर कुगति में डार मोकों भवदधि से कर पार, 'जिनेश्वर' धर्म चलाने वाले ॥ ४ ॥
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महाकवि दौलतराम (पद ३७५-३७९)
(३७५)
जाऊं कहाँ तज शरन तिहारे ॥ चूक अनादितनी या हमरी माफ करो करुना गुन धारे डूबत हों भव सागर में अब तुम बिन को मुहवार निकारे तुम सम देव अवर नहि कोई, तातैं हम यह हाथ पसारे मोसम अधम अनेक उधारे, बरनत हैं श्रुत शास्त्र अपारे 'दौलत' की भवपार करो अब आयो है शरनागत
टेक 11
(३७७).
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॥ १ ॥
॥
२ ॥
(३७६) मैं आयो जिन शरन तिहारी, मैं चिर दुखी विभाव' भावतैं स्वाभाविक निधि आप विसारी ॥ मैं आयो. ॥ टेक रूप निहार धार तुम गुन सुन वैन" होत भवि शिवमग चारी
०
मम काज के कारन तुम, सुमरी सेव एक उर धारी ॥ मैं आयो. २॥ मिल्यौ अनन्त जन्म तैं अवसर अब विनऊ हे भवसर १२ तारी ।
परम इष्ट अनिष्ट कल्पना 'दौल' कहै झट भेट हमारी ॥ मैं आयो. ॥ ३ ॥
॥
३ ॥
॥ ४ ॥
थारे ' ॥ ५ ॥
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प्रभु मोरी १३ ऐसी बुधि१४ कीजिए ।
राग द्वेष दावानल" से बच, समता रस में भीजिये ॥ प्रभु ॥ टेक ॥
॥ १ ॥
।
१. बिगाड़ २. अधिकार ३. आदत ४. हत्यारे ५. बेसुध ६. बाहर ७. दूसरा ८. आपके ९. पर परिणति १०. भुला दिया ११. वचन १२. संसार सागर पार करने वाले १३. मेरी १४. बुद्धि १५. जंगल की आग १६. भींगना ।
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