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(१२८)
(३६२)
राग-कालिंगडो परज धीमो तेतालो म्हे' तौ थांका चरणां लागां, आन भाव परिणति त्यागां ॥ टेक ॥
और देव सेया दुख पाया, थे पायारे छौ अब बड भांगा ॥ १ ॥ एक अरज म्हाकी सुणि जग पति, मोह नीद सौं अबके जायां । निज सुभाव थिरता बुधि दीजे, ओर कछु म्हे नाहीं मांगां ॥ २ ॥
(३६३)
राग-पराज म्हे तो ऊभा राज था. अरज करां छां मानौ महाराज ॥ टेक॥ केवलज्ञानी त्रिभुवन नामी, अंतरजामी सिरताज ॥१॥ मोह शत्रु खोटो संग लाग्यौ बहुत करै छै अकाज । यातें बेगि बचावो म्हानैं थाने म्हां की लाज ॥२॥ चोर चंडाल अनेक उवारे' गीध श्याल मृगराज । तौ बुधजन किंकर के हितमैं ढील' कहा जिनराज ॥ ३ ॥
महाकवि भागचन्द (पद ३६४-३६६)
(३६४)
राग-सोरठ स्वामी मोहि अपनो जानि तारौ११, या विनती अब चित धारौ ॥टेक ॥ जगत उजागर करुणा सागर, नागर नाम तिहारो ॥ १ ॥ भव अटवी१२ में भटकत भटकत अब मैं अती हारो ॥२॥ भागचन्द स्वच्छन्द ज्ञानमय सुख अनंत विस्तारौ ॥३॥
(३६५)
राग-जोड़ा मैं तुम शरन लियो, तुम सांचे प्रभु अरहंत ॥ टेक ॥ तुमरे दर्शन ज्ञान मुकर५ में दरश ज्ञान झलकंत६ । अतुल निराकुल सुख आस्वादन वीरज अरज(?) अनंत ॥१॥ राग द्वेष विभाग नाश भये परम समरथी संत । १.मैं तो २.आपके चरणों में लगा हूं ३.बड़े भाग्य से पाया हूं ४.हमारी सुन लीजिए ५.खड़ा ६.आपसे अरज करते है ७.बहुत नुकसान करता है ८.पार लगाये ९.दास १०.ढिलाई ११.पार करो १२.श्रेष्ठ १३.संसार रूपी जंगल १४.बहुत थक गया १५.दर्पण १६.झलकते हैं १७.समान रस वाले।
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