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कीजै प्रीति सुमति' हंसी सौ, बुध हंसन की प्यारी ॥ मन. ॥ २ ॥ काहे को सेवत भव झीलक' दुखजल पूरित खरी । निज बल पंख पसारि ठड़ो किन हो शिवसर' वकचारी ॥ मन. ॥ ३ ॥ गुरु के वचन विमल मोती चुन क्यों निज बान' विसारी | ह्वै है सुखी सीख सुधि सखे, 'भूधर' ख्वारी
॥ मन. ॥ ४ ॥
राग-ख्याल
(२९५)
और सब थोथी' बातैं भजले श्री भगवान ॥ टेक
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प्रभु बिन पालक' कोई न तेरा स्वारथ मीत पर बंनिता जननी सम गिननी, परधन जान
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जहान" ॥ १ ॥ पखान १२ 11
वेद पुरान ॥ और ः ॥ २ ॥ औगुन ४
खान
इन अमलों परमेसुर राजी भाजैं ३ जिस उर अंतर बसत निरंतर नारी वहां कहों साहिब का वासा, दो १५ यह मत सतगुरू उर धरना, करना 'भूधर' भजन पलक' न विसरना, भरना मित्र निदान
खांडे इक म्यान ॥ और ॥ ३ ॥
- १६
कहिन
गुमान "
. १७
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(२९६)
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॥ मेरे. ॥ २ ॥
मेरे चारौं १८ शरन सहाई ॥ टेक ॥ जैसे जलधि परत वायस९ कौं बोहिथ एक उपाई २१ ॥ मेरे. ॥ १ ॥ प्रथम शरन श्री अरहन्त चरन की, सुर नर पूजत पाई । दुतिय शरन श्री सिद्धन फेरी २२, लोक तिलक पुरराई तीजो सरन सर्व साधुन की नगन दिगम्बर काई २३ चौथे धर्म अहिंसा रूपी सुरग मुकति सुखदाई दुर्गति परत सुजन परिजन पै, जीव न राख्यो जाई 'भूधर' सत्य २४ भरोसो इनको ये हीं २५ लेहि बचाई
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॥ और ॥ ४ ॥
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१. सद्बुद्धि २. झील ३. दुख रूपी जल से भरी ४. खड़ा ५. मोक्ष रूपी लालच में विदोना ६. आदत ७. बरबादी ८. व्यर्थ ९. पालन करने वाला १०. मित्र ११. संसार १२. पत्थर १३. बोलते हैं १४. अवगुण की खान स्त्री १५. एक म्यान दो तलवारें १६. घमंड १७. पल भर की १८. चार -( १ अरहन्त २ सिद्ध ३ साधु ४अहिंसा) १९. कौए को २० जहाज २१. उपाय २२. की २३. शरीर २४. सच्चा भरोसा २५. ये ही बचा लेंगे ।
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॥ मेरे. ॥ ३ ॥
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॥ मेरे. ॥ ४ ॥
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