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(१०३) (२९२)
राग-सोरठ अन्तर' उज्ज्वल करना रे भाई ॥ टेक ॥ कपट कृपान तजै नहिं तबलौं', करनी काज न सरना रे ॥ अन्तर. ॥ १ ॥ जप तप तीरथ जज्ञ ब्रतादिक आगम अर्थ उचरना रे । विषय कषाय कीच' नहिं धोयो, यों ही पचि मरना रे ॥ अन्तर. ॥ २ ॥ वाहिक भेष क्रिया उर शुचि सों कीये पार उतरना रे । नाहीं है सबलोक रंजना ऐसे वेदन करना रे ॥ अन्तर. ॥३॥ कामादिक मनसौं मन मैला भजन किये क्या तिरना रे। 'भूधर' नील वसन' पर कैसे केसर रंग उछरना रे ॥ अन्तर. ॥ ४ ॥
(२९३)
राग-सोरठ बीरा ! थारी बान २ बुरी परी रे, वरज्यो३ मानत नाहिं ।। टेक ॥ विषय विनो महाबुरे रे दुख दाता, सरबंग । तू हठसौं ऐसे रमै रे ढ़ीबे५ पड़त पतंग ॥ वीरा. ॥ १ ॥ ये सुख हैं दिन दोय केरे फिर दुख की सन्तान। करे कुहाड़ी ६ लेइकै रे, मति मारै७ पग जानि ॥ वीरा. ॥ २ ॥ तनक न संकट सहि सकै रे । छिन मे होय अधीर । नरक विपति बहु दोहली रे कैसे भरि है वीर ॥ वीरा. ॥ ३ ॥ भव सुपना हो जायेगा रे, करनी रहेगी निदान । 'भूधर' फिर पछतायगा रे अबुही समुझि अजान ॥ वीरा. ॥ ४ ॥
(२९४)
राग-काफी मन८ हंस हमारी लै शिक्षा हितकारी ॥ टेक ॥ श्री भगवान धरन पिंजरे वसि, तजि विषयनि की यारी ॥ मन. ॥ १ ॥ कुमति कागली सौं मति राचा२२, ना वह जात तिहारी।
१.हृदय २.तलवार ३.तबतक ४.सिद्ध होना ५.कीचड़ ६.थक कर ७.खुश करना ८.अनुभव करना ९.भजन करने से क्या तर जाओगे ? १०.नीला वस्त्र ११.चढ़ना १२.आदत १३.मना करने पर १४.सब प्रकार से १५.जैसे दिया में पतिंगा गिरता है १६.हाथ में कुल्हाड़ी १७.जानकर पैर में मत मारो १८.मन रूपी हंस १९.पिंजड़े में रह कर २०.दोस्ती २१.कौवी २२.लीन होना।
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