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(२९७) राग-काफी
प्रभु गुन गाय रे यह औसर' फेर न आय रे ॥ टेक ॥ मानुज भव जोग दुहेला, दुर्लभ सत संगति मेला । सब बात भलो बन आई, अरहन्त भजो रे भाई ॥ प्रभु ॥ १ ॥ पहलै चित वीर संभारो कामादिक मैल उतारो ।
फिर प्रीति' फिटकरी दीजे, तब सुमरन रंग रंगीजे ॥ प्रभु ॥ २ ॥ धन जोर भरा जो कूवा, परवार बढ़े क्या हूवा । हाथि चढ़ि क्या कर लीया प्रभु नाम बिना धिक जीया ॥ प्रभु ॥ ३ ॥ यह शिक्षा' हे व्यवहारी, निहचैं की साधनहारी ।
'भूधर' पैड़ो" पग धरिये, तब चढ़ने को चित करिये ॥ प्रभु ॥ ४ ॥
(२९८)
राग-कल्यान
सुनि सुजान ! पांचों " रिपु वश करि
सुहित करन असमर्थ अवश करि ॥ टेक ॥
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जैसे जड़ खखार को कीड़ा सुहित सम्हाल सकै नहिं फंस कर ॥ सुनि ॥ १ ॥ पांचन १५ को मुखिया मन चंचल पहले पकर रस ! कस करि । समझ देखि नायक" के जीतै, जै हे भजि" सहज सब लसकरि८ ॥ सुनि ॥ २ ॥ इन्द्रिय लीन जनम सब खोयो, बाकी चलो जात है खसकरि १९ 'भूधर' सीख मान सतगुरु की इनसो प्रीति तोरि अब वश करि ॥ सुनि ॥ ३ ॥
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(२९९)
२२
देव गुरू सांचे२१ मान सांचों धर्म हिये आन, सांचो ही बखान सुनि पंथ आव रे 11 जीवन की दया पाल झूठ तजि चोरी दाल' देख न विरानी बाल तिसना घटाव रे अपनी बड़ाई भाई
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२३
परनिंदा मत कर
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९. अवसर २. फिर ३. कठिन ४. काम आदि मैल ५. प्रीति रूपी फिर कभी ६. स्मरण रूपी रंग को रंगो ७. हाथी पर चढ़कर ८. व्यावहारिक शिक्षा ९. निश्चय का साधन १०. सीढ़ी । ११. पांच इन्द्रियाँ १२.मलाई १३. कफ १४. भलाई कर सके १५. पांचों का मुखिया मन १६. सभी पति १७. भाग जायेगा १८. सेना १९. खिसक कर २० वश में करो २१ . सच्चे २२. टाल दो २३. दूसरे की स्त्री ।
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