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कवि बुधमहाचन्द्र (पद ३३१-३३४)
सीख सुगुरु नित्य उर धरौ सुन ज्ञानी जी ॥ एक' भजो तज दोय ज्ञानी जी ॥ सीख. ॥ टेर ॥ तीन सदा उर में धरो सुन ज्ञानी जी, तजो चार को हेत ज्ञानी जी॥ सीख.॥ १ ॥ पंचम को नित संग करो सुन ज्ञानी जी। षट तज नीका जानि ज्ञानी जी ॥ सीख. ॥ २ ॥ सातन को चितवन करो सुन ज्ञानी जी । आठ तजो दुखकार ज्ञानी जी॥ सीख. ॥ ३ ॥ नौ ह्रदय नित धारिये सुन ज्ञानी जी । दश° फुनि ग्यारा१ धारि ज्ञानी जी ॥ सीख. ॥ ४ ॥ बारह२ फुनि तेरह१३ भजो सुन ज्ञानी जी । बुधमहाचन्द्र निहार ज्ञानी जी॥ सीख. ॥५॥
(३३२) भाई चेतन चेत सके तो चेत अब नातर" होगी खुवारी५ रे ॥ टेक ॥ लख चौरासी में भ्रमता भ्रमता दुरलभ नर भव धारी रे। आयु लई तहाँ तुच्छ दोषतै पंचम काल मंझारी रे ॥१॥ अधिक लई तब सौ बरसन की आयु लई अधिकारी रे। आधी ६ तो सोने में खोई तेरा धर्म ध्यान विसरानी ॥ २ ॥ बाकी रही पचास वर्ष में तीन दशा दुखकारी रे। बाल अज्ञान जवान त्रिया रस बृद्धपन बलिहारी रे ॥ ३ ॥ रोग अरु शोक संयोग दुख बसि वीतत है दिन सारी रे । बाकी रही तेरी आयु किती° अब, सो मैं नाहि विचारी रे ॥ ४ ॥ इतने में ही किया जो चाहै सो तू कर सुखकारी रे । नहीं फंसेगा फंद बिच पंडित महाचन्द्र यह धारी रे ॥ ५ ॥
१. आत्म स्वरूप २. राग-द्वेष ३. रत्नत्रय ४. चतुर्गति, चार कषाय ५. पंचवत ६. षड्लेश्या ७. साततत्व ८. आठ कर्म ९. नव पदार्थ १०. दश धर्म ११. ग्यारह प्रतिमाएँ १२. बारह भावनायें, बारह तप १३. तेरह प्रकार का चारित्र १४. अन्यथा १५. बरबादी १६. आधी आयु सोने में खो दी १७. भुलाकर १८. बाल, युवा और वृद्ध १९. बीतते हैं २०. कितनी।
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