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(११६) छिन छिन फटत घटत थित ज्यौ जल अंजुलि' को झर जावैगा ॥ जम. ॥ १॥ जन्म ताल तरु” पर जियफल, कोलग बीच रहावैगा । क्यौं न विचार करै नर आखिर, मरन मही में आवैगा ॥ जम. ॥ २ ॥ सोवत मृत लागत जीवत ही, श्वासा जो थिर पावैगा । जैसे कोऊ छिपै सदासौं कबहुं अवशि' पलावैगा ॥ जम. ॥ ३ ॥ कहूं कबहुं कैसे हू कोऊ, अंतक से न बचावैगा ॥ सम्यक ज्ञान पियूष पिये सौं 'दौल' अमर पद पावैगा ॥ जम. ॥ ४ ॥
(३२९) निज हित कारज करना भाई निज हित कारज करना ॥ टेक ॥ जनम मरन दुख पावत जातै सो विधिबंधक तरना ॥निज. ॥ १ ॥ ज्ञान दरस अरु राग फरस रस, निज पर चिन्ह भ्रमरना। संधि भेद बुधि छैनी से कर निज गहि पर परि हरना" ॥ निज. ॥ २ ॥ परिग्रही अपराधी शंकै ५ त्यागी अभय विचरना । त्यों परचाह बंध दुखदायक, त्यागत सब सुख भरना ॥ निज. ॥ ३ ॥ जो भव भ्रमन न चाहै तो अब सुगुरु सीख उर धरना । 'दौलत' स्वरस सुधारस चाखो, ज्यौं विनसै भव मरना ॥ निज. ॥ ४ ॥
(३३०) हो तुम शठ अविचारी जियरा जिनवृष पाय वृथा खोवत हो ॥ टेक ॥ पी अनादि मदमोह स्वगुननिधि, भूल अचेत नींद सोवत हो ॥ १॥ स्वहित सीख बच सुगुरु पुकारत, क्यों न खोल दृग जोवत हो । ज्ञान विसार बिषय विष चाखत, सुरतरु जारि कनक बोवत हो ॥२॥ स्वारथ सगे सफल जन कारन, क्यों निज पाप भार ढोवत हो । नरभव सुकुल जैन वृष नौका२२ लहि निज क्यों भवजल२३ डोवत है ॥ ३ ॥ पुण्य पाप फल बात व्याधि वश, छिन में हंसत छिनक रोवत हो । संयम सलिल लेय निज उरके, कलिमल क्यों न 'दौल' धोवत हो ॥ ४॥
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१. अंजुली के जल की तरह २. कब तक ३. सोते में मरे की तरह ४. स्थिर रहेगा ५. अवश्य ६. भागेगा ७. मृत्यु ८. बचायेगा ९. अमृत १०. कार्य ११. जिससे १२. कर्म बंधन १३. बुद्धि रूपी छैनी से १४. त्यागना १५. शंका करना १६. हृदय में धारण करना १७. प्राणी १८. जैन धर्म १९. आंखें खोलकर क्यों नहीं देखता २०. जलकर २१. धतूरा २२. जैन धर्म रूपी नौका २३. संसार सागर में डूबता है २४. पाप ।
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