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( ११८ )
(३३३)
जीव तू भ्रमत-भ्रमत भव' खोयो, जब चेत गयो तब रोयो ॥ टेक ॥ सम्यग्दर्शन
रि
विगोयो ।
अति सोयो ॥ १ ॥
उरझोयो ।
ज्ञान चरण तप यह
इनही
बिषय भोग-गत रस को रसियो छिन छिन में क्रोध मान छल लोभ भयो तब मोहराय के किंकर यह सब इनके मोह निवार संवारसु आयो आतम बुध महाचन्द्र चन्द्र सम होकर
में
.५
वसि
हे "
हित स्वर
उज्ज्वल चित
(३३४)
1
॥ १ ॥
रे
॥ २ ॥
॥
३॥
जिया तूने लाख तरह समझायो, लोभीड़ा' नाही मानै रे ॥ टेक ॥ जिन करमन संग बहु दुख भोग तिनही से रुचि ठानै । निज स्वरूप न जानै रे विषय भोग बिष सहित” अन्न सम बहु दुख कारण खाने, जन्म जन्मान्तरानैं शिव पथ छांडि नर्कपथ लाग्यो मिथ्या मर्म भुलानै, मोह की घैल " आनैं रे ऐसी कुमति बहुत दिन बीतै अबतो समझ सयाने, कहैं बुध महाचन्द्र छानै रे महा कवि दौलराम (पद ३३५-३३७) (३३५) राग-तिलक कामोद.
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लुटोयो ॥ २ ॥
जोयो
।
रखोयो
॥ ३ ॥
.१३
॥ टेक ॥
ज्ञानी जीव निवार? भरमतम, वस्तु स्वरूप विचारत ऐसें सुत तिय४ बंधु धनादि प्रगट पर, ये मुझतें १५ हैं भिन्न इनकी परणति है इन आश्रित जो इन देह अचेतन चेतन मैं इन परिणति १७
प्रदेशें ।
वै
भाव परन १६ होय एक सी
वैसे ॥ १ ॥ कैसे |
पूरन" गलन १९ स्वभाव धरे तन, मैं अज पर परिणमन न इष्ट अनिष्ट, वृथा
अचल अमल नभ " जैसे ॥ २ ॥
२३
नसे २२
राग रुख द्वन्द भयसैं । ज्ञान निज फंसे बंध में, मुक्ति होय समभाव' विषय चाह दव दाह नशै नहि बिन निज सुधा सिन्धु में
लयैसैं ॥ ३ ॥
.२४
पैसें २५ 1
१. नरभव २. धन धूल में खो दिया ३. उलझ गया ४. नौकर ५. वश होकर ६. लुटाया ७. संभालो ८. देखा ९. लोभी १०. विष मिला हुआ अन्न ११. मार्ग, गैल १२. दूर कर १३. भ्रमरूपी अंधकार १४. स्त्री १५. मुझसे १६. दूसरे १७. इनकी परिणति एक सी कैसे हो सकती है १८. पूर्ण १९. गलना २०. अजन्मा २१. आकाश की तरह २२. बंध में फंसने से ज्ञान नष्ट हो जाता है २३. समभाव होने से मुक्ति होती है २४. दावानल २५. पैठने से ।
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