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(९८)
इक' चित ध्यावत वांछित पावत आवत मंगल विषन टरै ॥ मोहनि धूलि परी मांथे चिर सिर नावत तत्काल झरै ॥३॥ तबलौं भजन संभार सयानै जब लौ कफ नहि कंठ अरै । अगनि प्रवेश भयो घर ‘भूधर' खोदत कूप न काज सरै ॥ ४ ॥
महाकवि भागचंद (पद २७९-२८२)
(२७९)
राग-दीप चन्दी निज कारज काहे न सारै रे, भूले प्रानी ॥ टेक ॥ परिग्रह १ भार थकी कहा नाहीं आरतहोत तिहारै१३ रे॥ १ ॥ रोगी नर तेरी वपुको कहा, तिस दिन नाहीं जारै रे ॥ २ ॥ क्रूर कृतांत सिंह कहा जग में, जीवन को न पछारै ६ रे ॥ ३ ॥ करन विषय विष भोजनवत कहा, अंत विसरत न धारै रे ॥ ४ ॥ 'भागचन्द' भव अंधकूप में धर्म रतन काहे डारै रे ॥५॥
(२८०) भव-वन में नहीं भूलिये भाई कर निजथल की याद ॥ टेक ॥ नर परजाय पाय अतिसुंदर त्याग हु सकल प्रमाद ॥ श्री जिनधर्म सेय° शिव पावत आतम जासु२१ प्रसाद ॥ भव. ॥१॥ अबके चूकत ठीक२२ न पड़सी पासी२३ अधिक विषाद । सहसी२४ नरक वेदना पुनि तहां सुणसी२५ कौन फिराद६ ॥भव. ॥ २ ॥ 'भागचन्द' श्री गुरु शिक्षा बिन भटका काल अनाद । तू कर्ता तू ही फल भोगत कौन करे बकबाद ॥ भव. ॥ ३ ॥
(२८१) ..
राग-दीपचन्दी करौ रे भाई तवारथ सरधान, नरभव सुकुल सुछिन पायके ॥ टेक ॥ देखन जाननहार आप लखि, देहादिक परमान ॥१॥
१. एक चित्त होकर २. ध्यान करता है ३. मोह की धूल ४. झुकाव से ५. खखार ६. अड़ता है ७. घर में आग लगने पर ८. कुआं खोदने से काम नहीं बनता ९.कार्य १०.सिद्ध करना ११.परिग्रह का १२.दुखी १३.तुमको १४.शरीर १५.यमराज १६.पछाड़ता है १७.इन्द्रियों के विजय १८.भूलते हुए १९.आत्मपद २०.सेवन करके २१.जिसकी कृपा से २२.ठीक नही होगा २३.पायेगा २४.सहन करेगा २५.सुनेगा २६.फरियाद शिकायत २७.अच्छा कुल २८.अच्छा क्षेत्र।
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