________________
(७१) बुध महाचंद
(२०७) मुनिजन जगजीव दयाधारी ।। मुनि. ।। टेर । पक्षी जटाउ ज्ञान बसत बन ताको जैन धर्मकारी' ॥ मुनि. ॥१॥ सम्यग्दर्शन प्रथम बतायो पांच अणुव्रत विस्तारी ॥ २ ॥ धर्मध्यान रत करके ताको हिंसक' भाव सब निवारी ॥ ३ ॥ ऐसे मुनिवर पुण्य उदय तैं भवि जीवन को मिलतारी' ॥ ४ ॥ बुधमहाचन्द्र मुनीश्वर ऐसे हम मिलने की बांछा भारी ॥ ५ ॥
कवि भागचन्द्र (पद २०८-२११)
(२०८) सम आराम विहारी, साधजन सम आराम विहारी ॥टेक ॥ एक कल्पतरु पुष्पन सेती जजत भक्ति विस्तारी । एक कंठ बिच सर्प नाखिया क्रोध दर्प जुत भारी । राखन एक वृत्ति दोउन में सबही के उपगारी २ ॥ सम. ॥१॥ सारंगी३ हरिबाल" चुखावै५ पुनि मराल ६ मंजारी । व्याघ्र- बालकर सहित नन्दिनी, व्याल° नकुल की नारी । तिनके चरन कमल आश्रयतें अरिता२१ सकल निवारी२२ ॥ २ ॥ अक्षय अतुल प्रमोद विधायक ताकौ धाम अपारी । काम धरा बिच गढ़ी सो चिरते२३ आतम निधि अविकारी । खनत४ ताहि लेकर करमें जे, तीक्षण बुद्धि कुदारी ॥ ३ ॥ निज शब्दोपयोग रस चाखत पर ममता न लगारी । निज सरधान ज्ञान चरनात्मक निश्चय शिवमगचारी । 'भागचन्द्र' ऐसे श्रीपति प्रति, फिर फिर ढोक हमारी ॥ ४ ॥
(२०९)
राग कलिंगड़ा ऐसे साधु सुगुरु कब मिलि है॥ टेक ॥
१. जैनधर्म धारण कराया २. हिंसक भाव दूर किया ३. मिलते हैं ४. मिलने की इच्छा ५. समता ६. फूल के लिए ७. पजते हैं८.डाले है ९. क्रोध और अहंकार से यक्त हैं१०. व्यवहार ११. दोनों में (शत्र मित्र) १२. उपकार हिरणी १४. सिंह के बच्चे को १५. दूध पिलाती है १६. हंस १७. बिल्ली १८. बाघ का बच्चा १९. गाय २०. सर्प-नकुल २१. बैर २२. दूर कर दिया २३. चिर काल से २४. खोदते हैं २५. बुद्धि रूपी कुदाली २६. श्रद्धा ज्ञान और चरित्र ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org